{ सामाजिक कार्यकर्ता मेधा पाटकर, संदीप पांडे, विमलभाई, फैसल खान और वकील एहतेशाम सहित 19 लोगों ने 27 दिसम्बर को मेरठ और मुजफ्फरनगर के पुलिस कार्रवाई से प्रभावित क्षेत्रों का दौरा किया था। यह लेख इस दौरे के अनुभवों पर है }
“मेरे लाल को ले आओ’ एक छोटे से कमरे में आलिम की मां रोकर बोल रही थी। आलिम के भाई सलाउद्दीन से पूछा तुम्हें क्या चाहिए? बोला हमें न्याय चाहिए और जिनके साथ ऐसा कुछ हुआ है उन सब के लिए नया चाहिए। साथ बैठे सभासद हाजी नूर आलम ने कहा पुलिस लाश नहीं दे रही थी। विधायक साहब ने व हमने पुलिस को इस बात की तसल्ली दी की हम लाश को वहीं दफना देंगे। वहीं पास में एक रिश्तेदार के घर पर गुसल कराकर छोटे से कब्रिस्तान में उसे दफन किया। यहा हिंदू मुसलमान सभी में इस बात का गुस्सा था कि निरपराध को क्यों मारा गया है। पुलिस इसीलिए उसकी बॉडी नहीं दे रही थी कि लोग सड़क पर जाम ना कर दें। शहीद आलीम के पिता ने दोनों हाथ उठाकर कहा कि हिंदू मुसलमान हम सब में आपस में बहुत प्यार से है। मैं मंडी में भी जाता हूं कोई परेशानी नहीं होती। आलीम के भाई ने छोटी सी वीडियो दिखाई जिसमें आलिम रोटियां बना रहा है। एक खुशगवार सा लड़का। उसके विकलांग भाई ने यह भी बताया कि वह एक घंटे में 400 रोटी बनाता था। मगर अब घर में रोटियों के लाले हैं कमाने वाला एक वही था।
ई रिक्शा चलाने वाला आसिफ सीने पर गोली खाकर शहीद हुआ। आसिफ के पिता ने बताया यहां कोई सांसद नहीं आया। कोई मुआवजा नहीं। सरकार की ओर से कोई पूछने तक नहीं आया। आसिफ रोज की तरह सुबह 10रू00 बजे घर से गया था। गोली खाकर शहीद हुआ। पुलिस ने उसे आतंकी सरगना कहा।
मोहम्मद मोहसिन उम्र 23 साल, कबाड़ी का काम करता था। उसी ठेला गाड़ी में अपनी जानवरों के लिए चारा भी लाता था। चारे की दो बोरी उठाने गया था। सीने पर गोली खाकर दुनिया से उठ गया। किसी अस्पताल ने उसको नहीं लिया। वो 40 मिनट तक जिंदा था। सिटी अस्पताल ने भी मना किया। पुलिस ने कहा अंदर एंबुलेंस भी नहीं आएगी। मोहसिन के भाई ने तहरीर दी तो एस एच ओ ने का की हमारे खिलाफ तहरीर दे रहे हो ? फिर कहा हां हमने ही मारा। हमें इंसाफ चाहिए। शहीद मोहसिन को उग्रवादी का नाम दिया गया है। उसके बच्चों का भविष्य क्या होगा? स्थानीय लोगी ने कहा गलियों में फोर्स लगाई गई है। यहां से कोई प्रदर्शन में कभी नहीं गया। 1982 के दंगों में भी यहां पर कभी कुछ नहीं हुआ था।
मेरठ के फखरुद्दीन अली अहमद नगर व उसके पास के इलाके में यह पुलिस द्वारा की गई तीन हत्याओं पर लोगों के बयान थे।
मेरठ में पुलिस की गोली से छह हत्याओं की जानकारी अभी तक सामने आई है। पांच लाशें मिल चुकी है। एक लाश दिल्ली से पहुंचेगी तो मिलेगी। अपुष्ट सूत्र बताते हैं कि 17 को गोली लगी। 10 से ज्यादा मारे गए। जो मारे गए उनको चुपचाप से ही दफना दिया गया। क्योंकि पुलिस का भयानक डर है। किसी को भी चोट लगी पुलिस उसे दंगाई कहकर मुकदमा लगा देगी। मारो सालों को कहकर गोली मारी गई है। किसी को पोस्टमार्टम की रिपोर्ट नहीं दी गई है। अस्पतालों में भी किसी को कोई सहयोग नहीं मिला। खबर यह भी है कि पुलिस ने धमका कर रखा है कि अगर बोलोगे तो तुम्हारा इससे भी बुरा हश्र होगा। मुकदमा लगाएंगे, जेल में सड़ा दिए जाओगे।
जिंदगी तो जीनी है भले ही खौफ के साए में दो रोटी तो खानी है। इसी करके यंहा गरीब कोई सामने नहीं आ पा रहे। दहशत के माहौल में अखबार वालों से बात करने भी दो तीन ही लोग सामने निकल पाए हैं। गलियों में रात को हर नुक्कड़ पर अलाव जलते मिलेंगे। छोटे बच्चे और लोग बैठे रहे दिखते हैं। क्योंकि रात को पुलिस कभी भी आती है और किसी को अकेले उठाकर ले जा सकती है।
मेरठ में 4,000 से ज्यादा अज्ञात लोगों के नाम एफ आई आर दर्ज है। अकेले एक ही थाने में डेढ़ हजार लोग हैं लगभग 400 लोगों को जेल में डाला गया है।
बहुत आश्चर्य की बात है कि तथाकथित दंगे में शामिल लोगों की नामजद एफ आई आर में एक ही मोहल्ले के 150 लोगों के नाम दर्ज थे। एक ही रात में इतनी जल्दी लोगों की पहचान भी हो गई लोगों के नाम भी मिल गए? साफ है यह नाम किसी भी मतदाता सूची किसी भी अन्य तरह की सूची से उठाए गए हैं।
मुजफ्फरनगर
30 साल का नूर मोहम्मद मजदूरी करता था। उसके सिर पर गोली लगी। उसे जल्दी-जल्दी मेरठ में ही दफना दिया गया। उसकी गर्भवती पत्नी को मैय्यत देखनी भी नसीब ना हो पाई। आज वो बस इंसाफ मांगती है।
मुजफ्फरनगर के अंदरूनी इलाके में मीनाक्षी चौक के पास गली में ठीक सामने तीन मंजिला मकान है। इलाके के थोड़े समृद्ध परिवारों में से का हैं। मुख्य गेट के अंदर ही टूटी हुई कार, अंदर बिखरा हुआ, टूटा हुआ सारा सामान और पहली मंजिल पर डरी सहमी सी परेशान हैरान बेटियां। पैसा लूटा गया और हर समान को तोड़ दिया गया। कोई एफ आई आर तक नहीं। सरकारी अधिकारियों ने आकर निगाह तक नहीं डाली।
मीनाक्षी चौक के पास खालापार क्षेत्र के लोगों ने बताया कि 20 दिसंबर की रात को पुलिस ने घर-घर जाकर तोड़फोड़ की सभी सीसीटीवी तोड़ दिए गए। खालापार इलाके के और सर्वट गेट के पास लगभग 30 मकानों में डकैती जैसा आलम हुआ। जो चीज तोड़ी जा सकती थी तोड़ी गई। नकदी और जेवर तिजोरी तोड़ तोड़ कर लूट लिए गए। बाकी कोई सामान फ्रीज, टीवी, एसी आदि घर का कोई सामान नहीं छोड़ा जो तोड़ा ना गया हो। और यह सब पुलिस ने खुले रूप से किया और उनके साथ साधारण कपड़ों में लोग थे। जो कह रहे थे कि यहां से चले जाओ। उनके पास बड़े हथौड़े, मजबूत लाठियां और सरिए थे। अपने साथियों को बोल रहे थे कि फर्श मत तोड़ना। यहां रहना तो हमें ही है। ज्यादातर लोगों ने एफ आई आर करने का सोचा तक नहीं है। किसके पास जाएं, कौन सुनेगा? जब पुलिस ही चोर बन गई है।
यतीम बच्चों के मदरसे तक को नहीं छोड़ा गया। वहां छोटे-छोटे आठ-नो साल के बच्चों तक को मारा गया। यह सब 21-22 दिसंबर की रात के 2.00 और 2.30 के बीच हुआ। जेल से पहले थोड़े बच्चों को छोड़ा गया है। बाकी बच्चे छूट जाए इसलिए कोई खिलाफत में बोलने कोई भी तैयार नहीं है।
सरवट गेट इलाके में आरा मशीन के 72 वर्षीय मालिक को और उनके 13 साल के पोते को पुलिस ने बुरी तरह मारा। उनका एक बेटा जेल में है। दो पोतियों की शादी 4 फरवरी को होने वाली थी। अभी सिर पर चोट लेकर बैठी हैं। पूरा दहेज का सामान तोड़ दिया गया। जेवर पैसा लूट लिया गया। लगभग डेढ़ सौ लोग आए थे। रात 11रू00बजे और फिर सुबह 6रू00 बजे फिर आए थे। रात को फोन करते रहे कोई मदद नहीं मिली। बेटे को बहुत बुरी तरह मारा और थाने में हाथ में बंदूक देकर लगभग बेहोशी की हालत में ही उससे हस्ताक्षर कराए गए। अब घर वालों की एक ही चिंता है कि उसे कैसे छुड़ाएं?
सिविल लाइंस थाने में एक बड़े से हॉल में मारपीट के बाद लगभग डेढ़ सौ लोगों को रखा गया था। जिसमें कि बच्चे भी थे पानी मांगने पर पुलिस वाले साथी को गंदी जगह इशारा करके कहते जिप खोल कर इसको पेशाब पिला।
इलाकों की सीसीटीवी फुटेज को खत्म किया जा रहा है। डर के मारे लोग निकल नहीं पा रहे। मुजफ्फरनगर में अतिरिक्त जिला अधिकारी की अध्यक्षता में एक कमेटी बनी है। जिसके सामने नुकसान भरपाई की अर्जी दाखिल की जा सकती है। मगर 2013 के और भी कई बुरे अनुभव लोगों के पास है। फिर किसकी हिम्मत होगी और कैसे शिकायत के लिए जाएंगे? यह किसी भी तरह से कोई न्यायिक कार्य नहीं लगता, ना ही है।
2013 के मुजफ्फरनगर के दंगों के नेता, आज के सांसद संजीव बालियान अब केन्द सरकार में राज्य मंत्री हैं। वे मौके पर बहुत जगह मौजूद रहे। उनके साथ उनके बहुत सारे युवा सहयोगी रहे जो इस सब महान कार्यों में पुलिस के साथ रही। जिनकी भूमिका ज्यादा उग्र रही।
दंगों के बाद पुलिस की दबिश और तहकीकात नहीं है। यह पूरी तरह योजनाबद्ध निर्देशों का पालन है। जिसके पीछे मुख्यमंत्री के बदला लेने सबक सिखाने के बयान काम करते हैं। इन सब को धार्मिक रूप देने की बहुत कोशिश की गई किंतु यहां कोई हिंदू मुस्लिम दंगे जैसे ही स्थिति बिल्कुल नहीं हुई हां मुसलमानों के घर लूटे गये, गोलियों से उनकी हत्या की गई, लाठियों से बुरी तरह मारा गया। जिसके बाद धमकी और डर का खौफ फैलाए गया है ताकि वह बोल ना पाए। 27 दिसंबर को मुजफ्फरनगर मेरठ में फिलहाल यही स्थिति है।
सत्ता का सर्वाेच्च ही जब बदला लेने की, वसूलने की बातें धमकी भरे शब्दों में बोलता हो। तो उसके नीचे का वर्ग, सत्ता का पहला ख़ौफ़, सिपाही नृशंस हो उठता है। जिसमें बरसों से भरा जा रहा सांप्रदायिकता का जहर, गाली, लाठी और गोली के रूप में मुसलमानों पर बेइंतहा टूट पड़ा है।
उत्तर प्रदेश में पिछले वर्षों में गौ हत्या के नाम पर की गई मुसलमानों की हत्याओं में आज तक ना जांच पूरी हो पाई है न कोई सजा हो पाई है। योगी शासित प्रदेश में वीभत्स शासन शैली दिखाई देती है। तथाकथित योगी हमेशा से उग्र हिंदूवादी राजनीति के पुरोधा रहे हैं। उसी के बल पर आज शासन में हैं। मगर वह यह भूल गए हैं कि वह संविधान की शपथ लेकर मुख्यमंत्री बने है ना कि हिंदू राष्ट्र की। और यदि हिंदू राष्ट्र भी मानते हैं तो क्या हिंदू राष्ट्र ऐसा बनाएंगे?
विमल भाई अमन की पहल – जन आंदोलनों का राष्ट्रीय समन्वय के वरिष्ठ कार्यकर्ता हैं।