“शाहीन बाग” दिल्ली और उत्तर प्रदेश के बॉर्डर के पास की बड़ी मुस्लिम बस्ती है। यह मुस्लिम बस्ती आसपास के कई मुस्लिम इलाकों जाकिर नगर आदि से भी जुड़ी है।
यह घनी आबादी वाला इलाका जामिया मिलिया विश्वविद्यालय पर हुए अपना पुलिसिया हमले के बाद अचानक ही देश और कहे तो विश्व के पटल पर आ गया है। छोटी नन्ही बच्चियों को गोद में लिए महिलाएं और बड़ी-बूढ़ी महिलाएं जो अब शाहीन बाग की दादियों के नाम से प्रसिद्ध हो गई हैं, वहां कड़कड़ाती सर्द रातों को चुनौती देकर बैठी हैं।
दिल्ली का तमाम प्रबुद्ध वर्ग व अन्य मानवीय चेतना रखने वाले लोगों के अलावा देश के दूसरे हिस्सों से भी लोग वहां पहुंच रहे हैं।
दिल्ली में एक नया जंतर मंतर खड़ा हो गया है संसद के निकट वाले जंतर मंतर पर अब मुश्किल से तीन चार सौ मीटर के घेरे में आप 9:00 से 5:00 का धरने पर बैठ सकते हैं। उसके बाद बड़ा पुलिस दल अन्य सुरक्षा बलों के साथ आप को हटाने के लिए खड़ा हो जाता है।
और यहां का आलम यह है कि सुबह, रात का जगा दिन है। दोपहर को दिन अंगड़ाई लेता है। रात को जब दिन ढलता है तो सड़क और जवान हो जाती हैं। जिसको देखो वही नया कुछ करने को बेताब है। एक रोनक मेला जैसा लगा है। मुख्य पंडाल के साथ में दो बड़ी देगो के नीचे लगातार चूल्हा जल रहा है। खाना पक रहा है। आपको शाइन बाग की सबसे चौड़ी वाली सड़क पर कार से उतरते लोग भी नजर आएंगे। जो धरने पर अपना खाने पीने का सामान कुछ और सामान पहुंचाने के लिए खड़े हैं। इस आंदोलन में किसी को पैसे की जरूरत नहीं है। जिसको जो लगता है वह आकर सहयोग करें।
जिसको लगता है कि वह देश पर आई इस भयानक विपत्ति के सामने संगत इन बहनों इन ताजियों, इन माताओं, इन बेटियों, इन बहुओं, इन नन्ही बच्चियों के सामने कुछ कहना चाहता है, वह मंच पर जाए और कहे। मंच पर कोई अपनी बात तरीके से, सलीके से रखता है। जोरदार तरीके से रखता है और जाता है। पंडाल के चारों तरफ में लोग खड़े रहते हैं सुनते हैं और देखते हैं।मगर अंदर जमीन पर बैठी यह वीरांगनाये टस से मस नहीं होती। जरूर जाती है घर के अपने काम भी निपटा कर आगे पीछे। समय बांधकर फिर पहुंच जाती हैं।
सड़क पर स्टील के बने बस स्टॉप पर फ़ैज़ की 2 लाइनें कागज पर लिखी है। “जब ताज उछाले जाएंगे और तख़्त गिराए जाएंगे” और नीचे बस स्टॉप पर ढेर सारे पोस्टर चिपके हैं। लोग बैठे हैं। यहीं कहीं एक जगह राष्ट्रीय झंडा, देश के कुछ प्रतीक बिक रहे हैं, बिना मोल के। जिसको जरूरत हो वह लेकर जा सकता है। जिसकी इच्छा हो वह लाकर रख सकता है देने के लिए।
बड़े पंडाल के पीछे एक जगह मेडिकल कैंप भी लगा हुआ है। दिल्ली के आर्टिस्टो ने सड़क पर ही चित्रकारी करनी शुरू की है। एक बहुत बड़ा दिल बनाया जा रहा है। कागज की नाव बनाकर उसे सड़क पर चिपका कर दिल का आकार दिया जा रहा है।फ़ैज़ का लिखा वही गीत इन कागजों पर छपा हैं।
चित्रकारो के पीछे एक छोटा सा इंडिया गेट का नमूना खड़ा है। जिस पर उन शहीदों के नाम लिखे हैं जो अभी नागरिकता संशोधन अधिनियम के खिलाफ चले आंदोलन में सत्ता द्वारा शहीद कर दिए गए हैं। इसके बगल में डिटेंशन सेंटर का नमूना, दो टूटे-फूटे बुर्ज और टूटे से पत्थर और कागज जो आसाम के डिटेंशन सेंटर में बरसों से रहने वाले लोगों के टूटे हुए सपनों बिखरी बर्बाद हुई जिंदगी के प्रतीक हैं।
यंहा रंग बिरंगे अलग-अलग तरह के लोग हैं। जामिया, जेनयू, डीयू सब जगह की छात्र है। तो कहीं गली मोहल्ले से आवाज सुन कर के आए लोग हैं। कहीं देश के दूसरे हिस्सों से भी आए लोग हैं। वह देखिए गुरुद्वारे से मंडली आई हैं। शायद यहां गुरु बानी साहिब को पढ़ेगे। एक सरदार जी के हाथ में बड़े से पैकेट हैं। और उनकी बगल में एक सज्जन के माथे पर तिलक है और सर पर नमाजी टोपी। अब बहुत गहराई से देखने पर भी आप यह नहीं समझ पाओगे कि यह कौन है? जबकि एक साहेब ने झारखंड की चुनावी रैली में ऐलान किया था कि कपड़ों से पहचानो। मगर हमें तो कपड़ों से उनकी कोई पहचान ना हो पाई। हाँ दिल से जरूर पहचान हो पाई कि वे इंसान है। यंहा सब आजाद होकर आए हैं अपनी बातें आजादी से रख पा रहे हैं। इस आजाद शब्द से यह सरकार घबराई है।
यहां किसी को कोई आफत नहीं कि वह जाए और बताएं कि हम समर्थन के लिए आए हैं। हां कुछ लोग जाते हैं मंच पर कहते जरूर हैं। बहुत लोग समूह में या एक बड़ा हुजूम बनकर भी आते है। ये हुजूम साथ देता है। खड़ा होता है और फिर चुपचाप लौट जाता है।
दो युवा हैदराबाद से आये हैं। बोले हमारा काम खत्म हो गया अब हम यहां शाहीन बाग की दादियों को मिलने के लिए रुके हैं। वाह रे! इंसानियत ने कौन-कौन से नए रिश्ते पैदा कर दिए।
ढूंढने पर कोई कोआर्डिनेशन कमेटी जैसी चीज नहीं मिलेगी। मगर कोआर्डिनेशन इतना जबरदस्त है जो आपकी आंखें वहां पहुंच कर के आप बयां कर देती हैं।
आखिर कौन सी ताकत है जिसने इनको सड़कों पर उतरने पर मजबूर कर दिया? और मजबूर कर दिया लोगों को कि वह अपने यहां से चले रैलियां लेकर के शाहीन बाग पहुंचे। मुसलमान ना तीन तलाक पर इतना सड़कों पर उतरा। ना मॉब लिंचिंग पर भी सड़कों पर इतने जाम ना हुए। लव जिहाद से लेकर न जाने कितने हमले 2014 के बाद से लंपट सत्ता ने उन पर थोपे हैं। सब सह लिया। अब उन्होंने माना कि यह हद हो गई है सीधा संविधान पर हमला है।
जिस संविधान के निर्माण के लिए बिना धर्म, जाति, संप्रदाय, लिंग, भाषा आदि देखें। लोग आजादी के लिए कुर्बान हो गए। वे लोग जो कभी आजादी के लिए लड़े नहीं वह कैसे देश के झंडे को लेकर राष्ट्रवाद का हल्ला मचा सकते हैं? सबसे बड़ा प्रश्न यही है और इसीलिए आज शाहीन बाग में महिलाओं ने नेतृत्व संभाला है।
देश में जगह-जगह अनिश्चितकालीन धरने चालू है। गोदी मीडिया भली दिखाइए ना दिखाएं। मगर सत्ता थरथराई जरूर है। इसीलिए आक्रमक बयान दिए जा रहे हैं। जिंदा गाड़ दिए जाने की, झूठे मुकदमे लगाकर जेल में ठूसने की धमकियां दी जा रही हैं। एक राज्य के उपमुख्यमंत्री की उपस्थिति में देश की सत्ता के ताकतवर लोग, जनता को धमकी दे रहे हैं। डरा रहे हैं। यह बताता है कि वह कमजोर है। वे आवाजों से डर रहे हैं। दूसरी तरफ लोगों ने की सत्ता की कमजोरी पहचान ली है और अब वे बिना डरे बोल रहे हैं।
आइए! हम भी शाहीन बाग चलें या एक और शाहीनबाग बना ले। उसमें अपने बोल मिला दे।
विमल भाई अमन की पहल – जन आंदोलनों का राष्ट्रीय समन्वय के कार्यकर्ता हैं।