जन आन्दोलनों का राष्ट्रीय समन्वय श्रम कानूनों को कमज़ोर करने के प्रयासों का कड़ा विरोध करता है !

भोजन के अधिकार, उचित मज़दूरी, सम्मान और नियोक्ता-राज्य की जवाबदेही के लिए संघर्ष जारी रहेगा !

1 मई 2020: जन आन्दोलनों का राष्ट्रीय समन्वय देश भर और भारत के उन सभी मेहनतकश मजदूरों के जज़्बे को सलाम करता है जो इस महामारी के बीच और कई बाधाओं, सरकार की उदासीनता और पूंजीवादी ताकतों का दबदबा झेलते हुए भी, अपने हक की लड़ाई जारी रखें हैं। हम उन सभी स्वास्थ्य कार्य, राहत, और आवश्यक सेवाओं में लगे कर्मचारियों को भी सलाम करते हैं जो अपनी जान जोखिम में लेकर देश को सुरक्षित रखने में लगे हुए हैं। हम गर्व के साथ याद करते हैं सभी कार्यकर्ताओं और ट्रेड यूनियन के साथियों को जिन्होंने अपना सारा जीवन  श्रमिक वर्ग की प्रगति के लिए लगा दिया।

हम इतिहास में एक बहुत ही नाजुक समय में हैं जहाँ एक ओर जलवायु संकट और  कोरोना संकट ने प्रकृति के खिलाफ मानव हस्तक्षेप के हानिकारक परिणाम सामने ला दिए हैं। वहीं दूसरी ओर, विश्व स्तर पर पूँजीवादी शक्तियां मेहनतकश जनता और प्राकृतिक संसाधनों के दोहन से मुनाफाखोरी करती जा रही हैं। भारत में भी सार्वजनिक क्षेत्र के निजीकरण के साथ ही, ‘सवाल उठाने वालों’ पर फासीवादी हमला बढ़त जा रहा है। सालों के संघर्ष के बाद जो 44 कानून न्यूनतम मजदूरी, निर्धारित काम की अवधि, सामाजिक सुरक्षा और यूनियन बनाने के अधिकारों के लिए मिले थे, उन्हे ‘4 लेबर कोड’ के माध्यम से दबाने का प्रयास किया जा रहा है। इसी प्रकार, प्रस्तावित ‘इन्डस्ट्रीअल रिलेशन्स बिल ’ पर संसदीय स्थायी समिति की आई हालिया रिपोर्ट, जिसमें ये कहा गया कि प्राकृतिक आपदाओं के दौरान श्रमिकों को भुगतान ‘अनुचित’ होगा, एक निंदनीय कदम है, जिसका विरोध किया जाना चाहिए।

व्यापक तौर पर होने वाला प्रवास अपने आप में नव-उदारवादी ‘विकास मॉडल’ का प्रतीक है जिसे पिछली सरकारों ने भी बढ़ावा दिया, लेकिन वर्तमान सरकार ने तो मजदूरों के हर अधिकार का ही ‘लॉकडाउन’ कर दिया। जो देश के निर्माण और चलाने में सबसे बड़ी भूमिका निभाते हैं, उन्ही श्रमिकों को आज इस लॉकडाउन में दो वक्त की रोटी नहीं मिल पा रही है। इस लॉकडाउन ने लाखों प्रवासी कामगारों और मजदूरों की दुर्दशा को भयावह रूप से सामने ला दिया है। उनमें से हजारों के पास घर पहुँचने के लिए पैदल चलने के अलावा कोई ‘रास्ता’ नहीं था, क्यूंकि वे विदेश में रह रहे लोगों और कुछ छात्रों की तरह ‘प्राथमिकता वर्ग’ नहीं थे।

आज भी सुरक्षित काम, समय पर मजदूरी और प्रति दिन 8 घंटे काम कई क्षेत्रों के श्रमिकों के लिए बस सपना ही है। लेकिन ‘महामारी’ का हवाला देते हुए कई राज्य सरकारें 12 घंटे काम को बढ़ावा देने का प्रयास कर रही है। यह मजदूरों के हितों में एक बड़ा प्रतिगामी कदम है, जिसके खिलाफ़ पुरजोर संघर्ष करना होगा। बिना किसी तैयारी और घोर तरीके से अमल में लाई गयी इस लॉकडाउन ने अन्य महत्वपूर्ण मुद्दों को भी सामने लाया है, जैसे कि प्रवासी मजदूरों के अपने घर में रहने या ट्रेन से घर पहुचने के बराबरी के अधिकार, बिना दस्तावेज की परवाह किए सभी को खाद्य सुरक्षा का अधिकार, इत्यादि।

केंद्रीय गृह मंत्रालय का प्रवासी मजदूरों को सड़क और ट्रेन के रास्ते घर पहुचाने का जो आदेश आया है वह कम और बहुत विलंबित है। हम ‘श्रमिक स्पेशल ट्रेन’ की घोषणा का स्वागत करते है, लेकिन हम अपील करते हैं कि ऐसी ट्रेन और चलाई जाए एवं अलग अलग राज्यों और मार्गों में चलाई जाएँ। हम यह भी अपील  करते हैं कि कम से कम मजदूरों से टिकट का पैसा न लिया जाए, और उनके लौटने का खर्च अंतर-राज्य प्रवासी श्रमिक अधिनियम 1967 के प्रावधानो के तहत सरकार या कान्ट्रैक्टर द्वारा उठाया जाए।

चूंकि लॉकडाउन के बीच प्रत्यक्ष मिलना संभव नहीं, इसलिए एन.ए.पी.एम ने आज ‘श्रमिक अधिकार: सम्मान, न्याय और जनवादी विकास’ पर राष्ट्रीय ई-सेमिनार का आयोजन किया। कृषि श्रमिकों, कारीगरों, नरेगा, निर्माण और अन्य मजदूरों से संबंधित कई  मुद्दों पर हुई इस चर्चा में मेधा पाटकर, ऋचा सिंह, पी. चेन्नाया, प्रसन्ना हेगोडु, डॉ. सुनीलम, कामायनी स्वामी, आशीष रंजन और विभिन्न राज्यों और संगठनों के लगभग 250 साथियों ने भाग लिया। कुछ प्रमुख मांगें नीचे दी गई हैं। मुख्य बात यह निकल के आई कि मजदूर वर्ग के लिए वास्तविक न्याय तभी संभव होगा जब हम अभी विकास के मॉडल पर पुनर्विचार कर, उसे सतत और जनता के बीच से निकले दृष्टिकोण वाले विकास का मॉडल बनाएंगे। सेमिनार से निकले मुद्दों पर हम आने वाले दिनों में संगठित तरीके से काम करने की आशा करते हैं।

हम मांग करते हैं कि भारत सरकार तत्काल:

  1. लेबर कोड के आड़ में श्रम कानूनों को कमज़ोर करने के प्रयास को बंद करे।
  2. सभी प्रवासी श्रमिक की मुफ्त, सुरक्षित और जल्द वापसी के लिए राज्य सरकारों को सहयोग करें। इस संदर्भ में टोल-फ्री हेल्पलाइन स्थापित करे।
  3. जन वितरण प्रणाली को सार्वजनिक करे। भारतीय खाद्य निगम के पास से खाद्य भंडारों को निकालकर श्रमिकों और गरीब परिवारों को बिना राशन कार्ड की शर्त रखे, बाटा जाए।
  4. लॉकडाउन की पूरी अवधि के लिए सभी क्षेत्रों में श्रमिकों को केंद्रीय श्रम मंत्रालय की सलाह के अनुसार पूरा भुगतान करे।
  1. जिन स्वास्थ्य कर्मियों की ड्यूटी में मौत हो गई वे और सभी सैकड़ों लोग जो लॉकडाउन के कारण मार गए उनके परिवारों को कम से कम 50 लाख का एक अनुकरणीय मुआवजा दें।
  2. सभी आदिवासी, दलित, छोटे एवं सीमांत किसानों, बटाईदार किसानों को कम से कम 25,000 रु का “इनपुट सब्सिडी” देना चाहिए! मई अंत तक, बीज एवं खाद पंचायत के स्तर पर तैयार उपलब्ध हो, इसकी पूरी व्यवस्था की जाए, चूंकि जून से खेती का ऋतु शुरू हो जाता है । (यह इसलिए भी ज़रूरी है, क्यूंकी ‘ लॉक-डाउन’ आज से फिर २ हफ़्तों के लिए बढ़ाया गया है।)
  3. सभी नरेगा जॉब कार्ड धारकों को ‘ऑन-वर्क’ के रूप में देखते हुए, कम से कम रु 6,000 / – तत्काल अंतरिम राहत के रूप में दें और बाद में पूर्ण भुगतान सुनिश्चित करें।
  4. सभी बिल्डिंग और अन्य निर्माण श्रमिकों को पंजीकरण की परवाह किए बिना, कम से कम रु 5,000 / दिए जाएँ।
  5. वर्तमान स्वास्थ्य बजट को मौजूदा 6% से बढ़ाकर 15% करें, सार्वजनिक स्वास्थ्य ढांचे को बेहतर करें।
  6. असंगठित श्रमिकों के लिए मातृत्व लाभ को 3 से 4 महीने के लिए रु 1,500 से बढ़ाकर रु 10,000 प्रतिमाह करें।
  7. देश के सभी असंगठित श्रमिकों के लिए ESI का लाभ दें।
  8. 7-वे वेतन आयोग के अनुसार उचित और गरिमापूर्ण जीवनयापन के लिए रु 22,500 प्रति माह, अर्थात रु 750 प्रति दिन की मजदूरी दें।
  9. असंगठित क्षेत्र श्रमिक अधिनियम, 2008 के अनुसार सभी श्रमिकों का पंजीकरण करें और उन्हें सामाजिक सुरक्षा दें।

कारखानों से लेकर खेतों तक, समुद्र तट से लेकर जंगलों तक, खदानों से लेकर अस्पतालों, और घरों से लेकर सड़कों तक, मजदूरों की बरबारी, सम्मान, और सुरक्षा के लिए लड़ाई जारी है। हमारा आंदोलन तब तक चलना चाहिए जब तक ऊपर लिखी सारी मांगे पूरी नहीं करवा लेते, और जब तक ‘आठ घंटा काम, आठ घंटा आराम, और आठ घंटा मनचाहा काम’ की ऐतिहासिक मांग पूरी नहीं होती। नफरत के इस दौर में, हमें मजदूर वर्ग की एकता को फिर से मजबूत करना होगा और धर्म, जाति, संस्कृति, लिंग या भाषा के आधार पर भेदभाव के प्रयासों को चुनौती देनी होगी। लॉकडाउन को शायद महामारी की स्थितियों के समय रोका नहीं जा सकता, लेकिन लॉकडाउन के आड़ में तानाशाही से लोकतंत्र को तोड़ने के किसी भी प्रयास को रोकना होगा।

इंकलाब जिंदाबाद! मजदूर एकता ज़िन्दाबाद!

अधिक जानकारी के लिए संपर्क करें: 7337478993, 9958797409 या इ-मेल करे: napmindia@gmail.com

NAPM India