अब और मौतें नहीं, अब और देरी नहीं: हमें ट्रेन और बसें अभी चाहियें !

10 मई, 2020: जन आंदोलनों का राष्ट्रीय समन्वय सोलह मज़दूरों की दुखद और परिहार्य ‘मृत्यु’ के समाचार पर गहरा आघात और पीड़ा व्यक्त करता है। इनमें से कई गोंड आदिवासी थे, जिनके ऊपर दो दिन पहले औरंगाबाद के पास रौंदती हुई एक मालगाड़ी गुज़र गयी। यह मजदूर पैदल चलकर मध्य प्रदेश अपने घर लौटने की कोशिश कर रहे थे। यह और इनके जैसे कई और प्रवासी मजदूरों की ‘मृत्यु’, जो कि कई हज़ार किलोमीटर दूर अपने घरों तक पैदल जाने पर मजबूर हैं, मोदी सरकार की लाखों प्रवासी मज़दूरों के प्रति विफलता और आपराधिक अदासीनता को दर्शाता है। राज्य सरकारों द्वारा मजदूरों की वापसी को प्राथमिकता देने की अनिच्छा और अक्षमता इस स्थिति को और भी ज़्यादा गंभीर बना रही है, जिसके पीछे कुछ हद तक कॉर्पोरेट-बिल्डर लॉबी का निहित स्वार्थ है।

पूरे देश ने देखा कि सरकार ने विदेशों से बहुत से लोगों को लाने में मदद की, लेकिन यहाँ अपने ही देश में प्रवासी मज़दूरों के अधिकारों की पूरी तरह से अवहेलना कर रही है। बिना उचित योजना के लागू किये गए ‘लॉकडाउन’ में स्पष्ट है कि करोड़ों प्रवासी मज़दूरों की विकट परिस्थितियों पर कोई ध्यान नहीं दिया गया, जो पहले से ही सामाजिक असुरक्षा के माहौल में जीते आये हैं। इससे ऐसी विषम स्थिति पैदा हो गयी है कि यह मज़दूर अब जैसे भी हो सके, वापस अपने घर जाने की कोशिश कर रहे हैं, और ज़्यादातर पैदल चल कर जाने को मजबूर हैं!

समाचारों और देश भर के मजदूरों, ट्रेड यूनियनों, आंदोलनों और नागरिक अधिकार समूहों के साथ हमारी बातचीत से इन लोगों, जिन्होंने हमारे शहरों के निर्माण और इस देश की पूँजी बनाने में मजदूरी की है, के और भी ज़्यादा दिल दहलाने वाले किस्से निकल कर आये हैं। ‘गैर-कोरोना’ मृत्यु को ट्रैक कर रहे शोधकर्ताओं ने आजतक लगभग 350 लोगों की मौत (जो पूरी तरह से बचायी जा सकती थीं) का आंकड़ा दिया है, जिसमें ज़्यादातर श्रमिक वर्ग के ही लोग हैं, जो कि ‘दुर्घटना’, चिकित्सा न मिलने, भूख, आर्थिक तंगी और ‘आत्महत्या’ के कारण हुई हैं! इनमें से हर एक ‘मौत’ के लिए भारत सरकार ज़िम्मेद्दार है।

सरकार द्वारा इन मजदूरों से ट्रेन का किराया लेना तो बेशर्मी की सारी हदें ही पार कर गया! विपक्ष और देश की जनता के पुरजोर विरोध के सामने सरकार को घुटने टेकने पड़े और घोषणा की गयी कि वह किराए का 85 प्रतिशत खर्च उठाएगी। गृह मंत्रालय द्वारा मजदूरों को घर वापस जाने की अनुमति और “श्रमिक स्पेशल” ट्रेनों के आदेश के 10 दिन बाद भी मज़दूर परेशान हैं और घर वापस जाने का इंतज़ार कर रहे हैं। यह आदेश भी स्पष्ट नहीं है (क्योंकि इसमें ‘फंसे हुए’ शब्द का प्रयोग किया गया है) और इस अस्पष्टता को मन मर्ज़ी से मज़दूरों को घर वापस जाने से रोकने के लिए इस्तेमाल किया जा रहा है। एक सप्ताह पहले, गृह मंत्रालय ने एक और बेरहम ‘स्पष्टीकरण’ जारी किया कि जो लोग ‘लॉकडाउन से एकदम पहले’ फँस गए थे, सिर्फ उन्हें यात्रा करने की इजाज़त है, जो एक बार फिर इन मज़दूरों को यात्रा करने में बाधा बन गया।

जितनी बड़ी संख्या में यह प्रवासी मजदूर वापस जाना चाहते हैं, उसके मुकाबले ट्रेनों की संख्या बहुत कम है। कोई पारदर्शी तरीका नहीं है जिससे मज़दूरों को ट्रेनों के जाने का समय पता चल सके और वे जान सकें कि उन्हें कब उनके घर पहुँचाया जायेगा। कईयों से गैर-कानूनी तरीके से पैसा ऐंठा जा रहा है। राज्य सरकारों का रवैया भी इसमें कोई मदद नहीं कर रहा। कई राज्य सरकारों पर उद्योगों का दबाव है कि ज़बरदस्ती मज़दूरों को रोका जाय, जबकि उनके खाने, रहने और सुरक्षा की कोई ज़िम्मेदारी लेना नहीं चाहता। कर्णाटक सरकार ने बिल्डरों के साथ बैठक करके फैसला किया कि वह ट्रेनें नहीं चलने देगी, लेकिन इस फैसले की व्यापक निंदा के बाद उसे अपना निर्णय वापस लेना पड़ा। हमारे संज्ञान में है कि तेलंगाना, तमिल नाडू और अन्य सरकारें भी इसी तर्ज़ पर बिल्डरों के साथ बैठकें कर रही हैं, हालांकि इसके बारे में सार्वजनिक स्तर पर कोई समाचार जारी नहीं किया जा रहा है। बिहार सरकार ने केरल से आने वाली एक ट्रेन को अपने राज्य में प्रवेश की अनुमति नहीं दी, और उस ट्रेन को रद्द करना पड़ा।

ट्रेनों की कमी और राज्य तथा केंद्र सरकार की उचित तैयारी न होने से इन फंसे हुए मजदूरों की मुश्किलें और बढ़ रही हैं। अब जब ज़्यादातर राज्य ‘अर्थव्यवस्था को पुनर्जीवित’ करने की तैयारी कर रहे हैं, तो वे इन मज़दूरों को ज़बरदस्ती रोकना चाहते हैं, जबकि मजदूर घर वापस जाने की ठान चुके हैं। हम देख रहे हैं कि किस प्रकार कई राज्यों के मुख्य मंत्रियों ने मजदूरों से रुकने की अपील की है, इस आश्वासन के साथ कि उनका ख़याल रखा जायेगा! इन मजदूरों के पुलिस द्वारा सताए जाने के अनगिनत वाक़ये हैं।

घर वापस जाते समय किसी भी राज्य में उन्हें क्वारंटाइन सुविधा में भर्ती कर दिया जाता है, जहाँ न उन्हें ढंग से खाना मिल रहा है, न ही देख रेख या सफाई है। तीन सरकारों – केंद्र, ‘’मूल-राज्य’ और ‘काम के राज्य के झगड़े में फंसे इन मजदूरों ने, अपने पैरों पर विश्वास करके, चलना शुरू कर दिया, अपने पूरे परिवार और सामान के साथ, और जहाँ संभव हुआ वहां ट्रक में पैसे दे कर बैठ गए! कितनी ही जगहों पर मज़दूर अनिश्चित काल के लिए बंदी बनाये जाने के खिलाफ विरोध में उठ खड़े हुए हैं! ध्यान रहे कि इस तरह से प्रवासी मजदूरों को कैद करना उनके आने-जाने की स्वतंत्रता के संवैधानिक अधिकार का हनन करना है।

और इस सब के बीच में, उत्तर प्रदेश और मध्य प्रदेश की सरकारों ने अगले तीन वर्षों के लिए मज़दूर नियमों में रियायत दे दी है। कई अन्य राज्यों, जिनमें राजस्थान जैसे कांग्रेस-शःसित राज्य भी शामिल हैं, ने काम के समय को 8 घंटे से बढ़ा कर 12 घंटे कर दिया है। और बाकी राज्य भी ऐसा ही करने की सोच रहे हैं। पहले से ही शोषण का शिकार हो रहे मज़दूर इससे और ज़्यादा शोषित होंगे। किसी भी अर्थव्यवस्था को ‘पुनर्जीवित’ नहीं किया जा सकता अगर मज़दूर, जो उसकी रीढ़ की हड्डी हैं, वही संकट में हैं और उनके साथ इस तरह बेदर्दी से व्यवहार किया जाएगा!

घर जाने वाले मजदूरों के साथ किये जा रहे इस दुर्व्यवहार की स्थिति में, हमारी मांग है कि:

  1. इन मजदूरों को उनके घर तुरंत वापस लाया जाए, नि:शुल्क और सुरक्षा तथा सम्मान के साथ। जो रास्ते में हैं, उन्हें अपने घरेलू राज्य तक जाने की इजाज़त दी जाए, जहाँ पर उन्हें गाँव के स्कूल/ पंचायत में सभी सुविधाओं के साथ, क्वारंटाइन किया जा सकता है।
  2. इन वापस लौट रहे प्रवासी मजदूरों के लिए, सभी राज्यों और ज़िलों के प्रमुख प्रवेश स्थलों पर पूरी सुविधाओं के साथ क्वारंटाइन सुविधाएं स्थापित की जाएं। कोविड-19 दिशानिर्देशों और संलेख का सख्ती से पालन किया जाए, जैसे कि दूरी बनाकर रखना, पी.पी.ई. किट और पोषण उपलब्ध कराना।
  3. दलालों और भ्रष्ट अधिकारीयों के खिलाफ कड़ी कार्रवाई की जाये जो प्रवासी मज़दूरों से यात्रा या चिकित्सा प्रमाणीकरण के लिए पैसे ऐंठ रहे हैं।
  4. क्वारंटाइन केंद्र से उनके गाँवों तक निशुल्क यातायात उपलब्ध कराया जाए।
  5. अपने राज्य पहुँचने वाले प्रत्येक मज़दूर को रु. 5,000/- का न्यूनतम नकद सहयोग तुरंत मुहैया करवाया जाए।
  6. मज़दूरों को ट्रेन और बसों के आने-जाने के समय की सही जानकारी दी जाये, और यह जानकारी अलग-अलग भाषाओँ में दी जाए। ‘काम वाले राज्य’ और ‘मूल-राज्य’ स्पष्ट और सुगम नियम बनाएं, जिसमें ‘ऑफलाइन’ पंजीकरण की सुविधा हो, और राज्य-वार टोल-फ्री, 24×7 काम करने वाले हेल्पलाइन का नंबर हो। पडोसी राज्य को इन मज़दूरों की बस यातायात में सहयोग करना ज़रूरी है।
  7. पुलिस को कड़े आदेश जारी किये जाएं कि वे किसी भी स्थिति में इन मजदूरों के साथ मार-पीट, दुर्व्यवहार नहीं कर सकते। ज़मीनी स्तर पर अधिकारीयों के पास सही जानकारी होनी चाहिए, जिसे वे मज़दूरों के साथ बाँट सकें। जो भी प्रवासी ‘काम करने वाले राज्यों’ में फंसे हुए हैं, उनके वापस जाने तक उनके खाने और रहने की व्यवस्था सुनिश्चित की जाए।
  8. सभी प्रमुख राजमार्गों, रेल स्टेशनों पर खाने और मदद/जानकारी की उचित व्यवस्था की जाए।
  9. सरकार को ‘प्रवासी मज़दूर कार्य योजना’ बनानी होगी, क्योंकि बड़ी संख्या में मज़दूरों की रोजी-रोटी छिन गयी है और वे लॉकडाउन के चलते ग़रीबी की स्थिति में आ गए हैं।
  10. सरकार को कम से कम अगले 6 माह के लिए, सार्वजनिक वितरण प्रणाली के अंतर्गत, शुष्क राशन वितरण को सार्वभौमिक बनाना होगा। इसी प्रकार, राज्य सरकारें भी सुनिश्चित करें कि मज़दूरों को लॉकडाउन की पूरी समयावधि के लिए पूरा वेतन दिया जाए और ठेकेदारों को इसके लिए ज़िम्मेदार बनाया जाए।

इंक़लाब जिंदाबाद । मज़दूर एकता ज़िंदाबाद।

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