सामाजिक कार्यकर्ता ऋचा सिंह और सुदामापुरी (उत्तर प्रदेश) के निवासियों के खिलाफ दर्ज की गयी दुर्भावपूर्ण एफ.आई.आर. वापस लो
सार्वजानिक रास्तों पर ‘प्रादेशिक आर्म्ड कांस्टेबुलरी’ द्वारा पैदा की गयी संदिग्ध बाधा पर निष्पक्ष जांच की जाए
12 जून, 2020: जनांदोलनों का राष्ट्रीय समन्वय उत्तर प्रदेश के सीतापुर ज़िले में प्रादेशिक आर्म्ड कांस्टेबुलरी द्वारा सार्वजनिक रास्तों पर मनमाने ढंग से पैदा की गयी बाधा के खिलाफ किये जा रहे लोगों के संघर्ष के साथ अपना समर्थन व्यक्त करता है। हम अपना रोष भी ज़ाहिर करते हैं कि पी.ए.सी. की मनमानी के खिलाफ कड़ी कार्रवाही करने के बजाय, सामजिक कार्यकर्ता ऋचा सिंह और सुदामापुरी, जहाँ यह संघर्ष चल रहा है, के अन्य निवासियों के खिलाफ एक व्यर्थ एफ.आई.आर. दर्ज कर दी गयी।
मुद्दा यह है कि मई माह के आखिरी सप्ताह में, सीतापुर के सुदामापुरी क्षेत्र में 90 वर्ष पुरानी नेपियर रोड पर कथित रूप से गैर कानूनी बैरिकेड बना दिए गए। सीतापुर नगरपालिका में आधिकारिक रूप से पंजीकृत (2015 के एक सरकारी दस्तावेज़ के अनुसार), सार्वजानिक रास्ता होने के बावजूद, नेपियर रोड पर कभी-कभार पी.ए.सी. की 11वीं बटालियन, सीतापुर द्वारा ‘अतिक्रमण’ होता आया है। पी.ए.सी. या प्रादेशिक आर्म्ड कांस्टेबुलरी उत्तर प्रदेश पुलिस का एक सशस्त्र बल है, जिसे राज्य भर में प्रमुख स्थानों पर तैनात किया जाता है और यह वरिष्ठ पुलिस अधिकारियों द्वारा निर्दिष्ट मामलों में कार्यवाही करती है।
खबर है कि 29 मई को, पी.ए.सी. ने नेपियर रोड के तीन कोनों पर गुप्त रूप से गेट बनाने शुरू कर दिए। जब इसकी खबर स्थानीय अफसरों को दी गयी, तो सीतापुर नगरपालिका के ई.ओ 30 मई को स्थल पर गए और उन्होंने आश्वासन दिया कि 3 दिनों के अन्दर मामले को सुलझा दिया जायेगा और कोई गेट नहीं लगाया जायेगा। लेकिन 31 मई की सुबह अचानक पी.ए.सी. ने फिर से गेट बनाने का काम शुरू कर दिया। जब संगतिन किसान मज़दूर संगठन (SKMS-NAPM, उत्तर प्रदेश) की ऋचा सिंह और कुछ और महिलाओं ने इस मनमानी का विरोध किया, तब तुरंत 500 पी.ए.सी. के जवान वहां पहुँच गए और उन्हें घेर लिया, जो कि स्पष्ट रूप से उन्हें डराने और जवाब पूछने से रोकने की कोशिश थी।
जल्द ही, ज़िला प्रशासन के अन्य वरिष्ठ अधिकारी मौके पर पहुँच गए। उसी दिन, बाद में ऋचा को नगरपालिका के कार्यालय में बुलाया गया, फिर कलेक्टर के घर पर, और फिर 1 जून को नगरपालिका कार्यालय में दोबारा चर्चा के लिए बुलाया गया। लेकिन, हांलाकि यह मामला अभी विचाराधीन ही था, पी.ए.सी. ने 1 जून को 12 बजे के बाद फिर से गेट बनाने का काम शुरू कर दिया।
इससे भी ज़्यादा विचित्र बात यह है कि उसी दिन (31 मई) आई.पी.सी. की धारा 188 (लोक सेवक द्वारा विधिवत आदेश की अवपालना), धारा 269 (खतरनाक बीमारी के संक्रमण को फ़ैलाने की सम्भावना के लिए की गयी लापरवाही) और धारा 270 (खतरनाक बीमारी के संक्रमण को फ़ैलाने की सम्भावना के लिए किया गया घातक कार्य) के साथ-साथ महामारी अधिनियम, 1897 की धारा 3 के अंतर्गत, ऋचा सिंह, सुदामापुरी के अन्य निवासी पंकज मिश्रा, सकील, अरविन्द श्रीवास्तव, वकील और अन्य 20 ‘अनजान’ व्यक्तियों के खिलाफ एक एफ.आई.आर. भी दर्ज की गयी!
इन 12 दिनों में, कई नागरिक दल ज़िले के वरिष्ठ अधिकारियों के कार्यालय गए हैं और सुदामापुरी के लोगों व क्षेत्र की अन्य जन संगठनों का विरोध प्रदर्शन भी चल रहा है, जिनकी मांग है की इन एकपक्षीय आरोपों को हटाया जाए। लेकिन, नौकरशाही सत्ता की मिलीभगत के इस उदाहरण में, ज़िला प्रशासन सुदामापुरी के निवासियों का साथ देने के बजाए, पी.ए.सी. का साथ दे रहा है। निष्पक्ष तरीके से मामले की जांच करने के बजाए, प्रशासन ने सुझाव दिया कि लोग ‘मॉल रोड’ से दूसरे ‘वैकल्पिक रास्ते’ का इस्तेमाल कर लें। स्थानीय लोग इसका विरोध कर रहे हैं कि इस रास्ते के दोनों ओर घना जंगल है, और यह यात्रियों, खासकर औरतों के लिए सुरक्षित नहीं है।
यह वास्तव में पेंचीदा है जिस तरह पी.ए.सी. अधिकारियों ने कोविड-लॉकडाउन के नियमों को अधर पर रखते हुए 31 मई को इतनी बड़ी संख्या में जवानों को इकठ्ठा होने दिया। इसके अलावा ऐसी कोई तीव्र आवश्यकता नहीं हो सकती कि स्थानीय लोगों से बात किये बिना उन्हें यह निर्माण करना ज़रूरी था। बल्कि अब, वे स्थानीय नागरिकों और कार्यकर्ताओं को झूठे इलज़ाम लगा कर परेशान कर रहे हैं। एफ.आई.आर. को पढ़ने से पता चलता है कि इसमें कोई मामला बनता ही नहीं है और ऋचा तथा अन्य लोगों पर बेबुनियाद आरोप लगाये जा रहे हैं कि वे ‘नेपियर रोड साईट से भाग गए’, जबकि असल में वे कई वरिष्ठ अधिकारीयों की मौजूदगी में वहीँ उपस्थित थे।
जनांदोलनों का राष्ट्रीय समन्वय (एन.ए.पी.एम.) की मांग है कि ऋचा सिंह और सुदामापुरी के बाकी निवासियों के खिलाफ दर्ज की गयी एफ.आई.आर. को तुरं ख़ारिज किया जाए। इस पूरे मामले की जांच की जाए, जिसके कारण दुर्भावनापूर्ण और गलत कारणों से एफ.आई.आर. दर्ज की गयी।
पी.ए.सी. द्वारा नगरपालिका की ज़मीन पर मनमाने तरीके से गेट बनाये जाने के मामले पर एक स्वतंत्र जांच की जाए और उसके आधार पर स्थानीय लोगों के इस सार्वजनिक रास्ते के उपयोग के अधिकार पर फैसला लिया जाए।
हम सुदामापुरी के निवासियों और स्थानीय लोगों के साथ एकजुटता में खड़े हैं, ख़ास कर महिलाओं के साथ, जो, कोविड के समय में भी, प्रशासन की इस मनमानी के खिलाफ संघर्ष में डटी हुई हैं।
हम सरकार को चेतावनी देते हैं कि लॉकडाउन में दिन-रात एक करके, प्रभावित लोगों, खासकर प्रवासी मज़दूरों की मदद कर रहे कार्यकर्ताओं के खिलाफ कानून, जिसमें महामारी अधिनियम भी शामिल है, का मनमाने तरीके से उपयोग न करे।
जनांदोलनों का राष्ट्रीय समन्वय (एन.ए.पी.एम.) के अखिल भारतीय सलाहकारों, समन्वयकों और संयोजकों की और से जारी