गोवा बचाओ | पश्चिम घाटी बचाओ | अंधाधुंध विनाश रोको !
भगवान महावीर वन्यजीव अभयारण्य और मोलेम नेशनल पार्क से होकर गुजरने वाली प्रस्तावित फोर-लेन राजमार्ग, 400 केवी ट्रांसमिशन लाइन व रेलवे लाइन की दोहरी ट्रैकिंग की पुनःसमीक्षा की जाए !
सुप्रीम कोर्ट को ‘पश्चिमी घाट इकोलॉजी एक्सपर्ट पैनल की रिपोर्ट में की गई सिफारिशों का अनिवार्य अनुपालन का निर्देश देना चाहिए
23 जून, 2020: पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन मंत्रालय (MoEFCC) द्वारा गोवा के संवेदनशील पर्यावरणीय इलाकों में कई ‘इंफ्रास्ट्रक्चर’ परियोजनाओं को ‘अंधाधुंध मंजूरी’ देने का सिलसिला, जन आंदोलनों के राष्ट्रीय समन्वय के लिए गहरी चिंता का विषय है | देश कोरोना महामारी और अनियोजित तरीके से किए गए लॉकडाउन में फंसा हुआ है, इसके बावजूद नेशनल बोर्ड फॉर वाइल्डलाइफ (NBWL) ने 7 अप्रैल को पर्यावरणीय रूप से संवेदनशील पश्चिम घाटी में फोर-लेन राजमार्ग और 400-केवी ट्रांसमिशन लाइन की ‘वीडियो मंजूरी’ दे दी। इन परियोजनाओं का निर्माण भगवान महावीर वन्यजीव अभ्यारण्य और मोलेम नेशनल पार्क के जंगलों से होकर किया जाना है।
इतना ही नहीं, अभ्यारण्य और नेशनल पार्क से होकर गुजरने वाली रेलवे लाइन की दोहरी ट्रैकिंग से संबंधित एक तीसरी परियोजना पर भी सरकार विचार कर रही है। तीनों परियोजनाओं में 50,000 से अधिक पेड़ों की कटाई होगी और 216 हेक्टेयर वन और निजी भूमि को डायवर्ट किया जाएगा। यह परियोजना 16 लाख से अधिक गोवा के नागरिकों की जल-सुरक्षा को भी खतरे में डाल देगा, क्योंकि इन परियोजनाओं के अंतर्गत रगाडा नदी के चारों ओर कटाई होगी, जो म्हादेई की सहायक नदी है। इन परियोजनाओं की अलग-अलग मंजूरी हासिल करना प्रोजेक्ट के प्रस्तावकों के लिए आदत-सी बन गया है, जबकि ये तीनों प्रोजेक्ट एक ही संरक्षित क्षेत्र में पड़ते हैं, जिसका ‘सम्पूर्ण प्रभाव आकलन’ करने की जरूरत है। यह पर्यावरण शासन प्रणाली की स्थिति पर एक बुरा प्रभाव है कि MoEFCC और NBWL इन महत्वपूर्ण वैधानिक आवश्यकताओं की अनदेखी करता है।
भगवान महावीर वन्यजीव अभयारण्य और मोल्लेम राष्ट्रीय उद्यान आस-पास के बड़े जंगल का हिस्सा हैं, जो वनस्पतियों और जीवों का खजाना है और यह गोवा और कर्नाटक में काली टाइगर रिजर्व के बीच एक महत्वपूर्ण टाइगर कॉरिडोर है। 240 वर्ग किलोमीटर क्षेत्र में फैला यह अभयारण्य और राष्ट्रीय उद्यान गोवा में सबसे बड़ा संरक्षित क्षेत्र है। यह जंगल पश्चिमी घाट का हिस्सा है, जो दुनिया के 8 जैव विविधता वाले हॉटस्पॉटों में से एक है और यूनेस्को की विश्व धरोहर स्थल का हिस्सा है। सभी तीन परियोजनाओं के लिए इस एकमात्र संरक्षित क्षेत्र के वन भूमि के डायवर्जन की जरूरत होगी।
इस संरक्षित क्षेत्र में 721 से अधिक पौधों की प्रजातियां, 235 पक्षी प्रजातियां, 219 तितली प्रजातियां, 80 ओडोनेट प्रजातियां, 70 स्तनपायी प्रजातियां, 75 चींटी प्रजातियां, 45 सरीसृप प्रजातियां, 44 मछली प्रजातियां, 43 कवक प्रजातियां, 27 उभयचर प्रजातियां, 24 आर्किड प्रजातियां और लाइकेन की 18 प्रजातियां निवास करती है। इस सूची में विभिन्न स्थानिक प्रजातियों के साथ-साथ दुर्लभ और अति-संवेदनशील प्रजातियां भी शामिल हैं, जैसे बाघ, ढोल, हिरण गौर और भारतीय पैंगोलिन और अन्य। इसके अलावा, 18 पक्षी प्रजातियां हैं जो पश्चिमी घाटों की स्थानीय प्रजाती हैं और 7 पक्षी प्रजातियां हैं, जो उच्च संरक्षण की चिंता के कारण यहां पाए जाते हैं. (भारत के पक्षियों की स्थिति, 2020 के अनुसार)।
वनस्पतियों और जीवों के अलावा, इन वनों में ताजे पानी की धाराएँ हैं जो गोवा की जीवन रेखा, मांडोवी नदी सहित मुख्य नदियों को जिन्दा रखती हैं। यह नदी पीने योग्य पानी का एक प्रमुख स्रोत है और सिंचाई की सुविधा प्रदान करती है। यह जैविक और खनिज संसाधनों का उत्पादन करती है और साथ ही राज्य के विभिन्न हिस्सों में लोगों और सामानों को ले जाने में मदद करती है। इन नदियों के किनारे बसे गाँवों में रहने वाले लोगों की पुश्तैनी आजीविका इन परियोजनाओं से बुरी तरह प्रभावित होगी।
इस क्षेत्र को 2011 में पश्चिम घाटी विशेषज्ञ पारिस्थितिकी पैनल (WGEEP) द्वारा एक पारिस्थितिक रूप से संवेदनशील क्षेत्र के रूप में चिह्नित किया गया था, जिसे उसी मंत्रालय द्वारा नियुक्त किया गया था जिसने अब इसके विनाश को गति देने के लिए ‘अनुमति’ दे दी है! WGEEP (माधव गाडगिल समिति) ने पश्चिमी घाटों में खनन, उत्खनन और लाल श्रेणी के उद्योगों जैसी हानिकारक गतिविधियों पर प्रतिबंध लगाने के लिए पर्यावरण मंत्रालय को एक विस्तृत रिपोर्ट सौंपी थी। पश्चिमी घाट के जंगलों में भी कई पवित्र उपवन हैं, जो सदियों से स्थानीय लोगों द्वारा संरक्षित हैं. क्योंकि ये उन्हें देवताओं के साथ जोड़ कर मानते हैं और इसलिए इसका ठोस सांस्कृतिक और संरक्षण की दृष्टि से महत्व है। पर्यावरण मंत्रालय या गोवा सरकार द्वारा राज्य के जल भंडार को सुरक्षित करने की भी किसी योजना की घोषणा नहीं की गई है।
पश्चिमी घाट दुनिया के सबसे महत्वपूर्ण बाघ वनक्षेत्र में से एक माना जाता है। एक तरफ हाईवे का विस्तार और फिर दक्षिण पश्चिम रेलवे की डबल ट्रैकिंग, उत्तरी भाग से कटे पश्चिमी घाट के दक्षिणी हिस्से से न केवल बाघों की मौत होगी, बल्कि अन्य कई जानवरों की भी मौत हो जाएगी जो वाहनों के पहियों के नीचे या रेलवे पटरियों पर मर जाएंगे, क्योंकि वे पटरियों को पार करने की कोशिश करते हैं। घाट भी ऐसी परियोजनाओं के लिए उपयुक्त नहीं हैं। यहाँ की पहाड़ियाँ बहुत खड़ी हैं और इसलिए, भूस्खलन की संभावना तेजी से बढ़ जाती है, जिससे इंसान और प्रकृति दोनों खतरे में पड़ सकते हैं! गोवा के पश्चिमी घाटों को पहले से ही बड़े पैमाने पर नष्ट कर दिया गया है, टिलारी बांध से हाथियों के आवासों का नुकसान हुआ है, लगातार हो रहे खनन ने घाटों के एक महत्वपूर्ण हिस्से को भी नष्ट कर दिया है।
कई पर्यावरण समूहों और युवाओं द्वारा हाल ही में सुप्रीम कोर्ट के समक्ष दायर एक याचिका में, WGEEP द्वारा जारी की गई सिफारिशों को लागू करने की मांग की गई है। 18 जून को, शीर्ष न्यायालय ने मामले में संज्ञान लेते हुए केंद्र और पश्चिमी घाट क्षेत्र में पड़ने वाले 6 राज्यों यानी गुजरात, महाराष्ट्र, गोवा, कर्नाटक, केरल और तमिलनाडु को नोटिस जारी किया। याचिका में इस तथ्य को स्पष्ट किया गया है कि WGEEP की महत्वपूर्ण सिफारिशें एक दशक बाद भी लागू नहीं की गई हैं और लगभग 250 मिलियन लोग प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष रूप से इस क्षेत्र में कथित विकासात्मक ’हस्तक्षेप से प्रभावित होंगे !
पश्चिमी घाट श्रेणी के ये वन जो हजारों वर्षों से मौजूद हैं, अपूरणीय हैं। यदि इन परियोजनाओं को मंजूरी दे दी जाती है, तो इससे वन्यजीवों और गोवा के लोगों की आजीविका और पारिस्थितिक सुरक्षा पर गंभीर नतीजे होंगे। यह अत्यंत दुर्भाग्यपूर्ण है कि इन वनों के बड़े हिस्से को साफ़ करने का निर्णय बिना किसी व्यापक क्षेत्र परीक्षण जांच के तथ्यों को पुष्ट किए, दस्तावेजों की विस्तार से जाँच या सभी हितधारकों की राय और आपत्तियों पर पूरी तरह से लोकतांत्रिक तरीके से विचार किए बगैर लिया जा रहा है। इसके बजाय, पर्यावरण मंत्रालय जल्दबाजी में वीडियो ‘कॉन्फ्रेंस मोड’ का विकल्प चुन रहा है और मौजूदा मामले में सिर्फ दो ऐसी बैठकों के बाद ही इन पारिस्थितिक रूप से विनाशकारी परियोजनाओं के लिए मंजूरी दे दी गयी है!
गोवा में चिंतित नागरिकों और पर्यावरण समूहों ने इस तथ्य पर कड़ी आपत्ति जताई है कि इन परियोजनाओं को खराब EIA (राजमार्ग परियोजना) या बिना EIA (पावर ट्रांसमिशन लाइन) के, NBWL द्वारा मंजूरी कैसे दी गई है। EIA और परियोजना प्रस्तावों का कोई पूर्ण सत्यापन नहीं किया गया है, जो नियामक संस्थानों की ‘पर्यावरण-संवेदनशील’ क्षेत्रों के प्रति असंवेदनशेलता दर्शाता है। राष्ट्रीय वन्य-जीवी मण्डल (NBWL) और पर्यावरण मंत्रालय (MoEFCC) ने पूरी तरह से EIA के उद्देश्य को कम कर दिया है और प्रकृतिवादियों, संरक्षणवादियों और सदियों से इन जंगलों में रहने वाले लोगों द्वारा लगाए गए सबूतों पर विचार करने के बजाय, परियोजना के प्रस्तावकों में निर्विवाद विश्वास को दोहरा दिया है, जिनके निहित स्वार्थ छिपे नहीं हैं।
- एन.ए.पी.एम केंद्र, पर्यावरण मंत्रालय और राज्य सरकार से ‘विकास’ के अपने मॉडल पर पुनर्विचार करने का आग्रह करता है और ऐसी सभी परियोजनाओं की आवश्यकता का तुरंत आकलन करने की मांग करता है, जिसका पर्यावरणीय और मानवीय लागत कहीं अधिक है।
- एन.ए.पी.एम मांग करता है कि फोर-लेन राजमार्ग और 400 के.वी ट्रांसमिशन लाइन के लिए दी गई मंजूरी तुरंत वापस ले ली जाए और भगवान महावीर वन्यजीव अभयारण्य और मोलेम पार्क के पास से गुजरने वाली रेलवे लाइन की दोहरी ट्रैकिंग के लिए कोई मंजूरी नहीं दी जाए।
- एन.ए.पी.एम की मांग है कि राज्य और केंद्र सरकार पश्चिमी घाटों में पहले से चल रही सभी बुनियादी ढांचा परियोजनाओं का फिर से आकलन करें और उन परियोजनाओं पर रोक लगाएं, जिनसे पर्यावरण को खतरा होने की संभावना है। हम माधव गाडगिल समिति (WGEEP रिपोर्ट) द्वारा इस नाजुक क्षेत्र की सुरक्षा के लिए दी गई सिफारिशों को सख्ती से लागू करने का आह्वान करते हैं और आशा करते हैं कि उच्चतम न्यायालय जल्द से जल्द इसे निर्देशित करेगा।
- हम मांग करते हैं कि कोरोना लॉकडाउन के दौरान पर्यावरण मंत्रालय द्वारा बिना किसी सार्वजनिक भागीदारी के और उचित EIA का संचालन किए बिना सभी बुनियादी ढांचा परियोजनाओं को दी गयी मंजूरी पर रोक लगायी जाये और उनकी मंजूरी वापस ले ली जाए।
- हम केंद्र सरकार से अपनी पर्यावरण नीति पर पुनर्विचार करने और पर्यावरण प्रभाव आकलन संशोधन, 2020 को वापस लेने का आग्रह करते हैं, खासकर तब जब हमारे लोग कोविड-19 के कारण पीड़ित हैं, और यह एक ऐसी महामारी है जो पर्यावरण के विनाश से काफी हद तक जुड़ी हुई है।
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