अखिल गोगोई, बिट्टू सोनोवाल, धैज्य कुँवर और मानस कुँवर को रिहा करो: झूठे आरोपों को तुरंत वापस लो !
एन.ए.पी.एम. 200 दिनों की अन्यायपूर्ण गिरफ़्तारी की निंदा करता है।
भा.ज.पा. के सांप्रदायिक, शोषक और विनाशकारी नीतियों के खिलाफ़ लोकतांत्रिक प्रतिरोध का अधिकार कायम रहे !
29 जून, 2020: जन आंदोलनों का राष्ट्रीय समन्वय मांग करता है कि दमनकारी आरोपों के आधार पर 200 दिनों से अन्याय पूर्ण तरीके से हिरासत मे रखे गए कृषक मुक्ति संग्राम समिति (KMSS) के जननायक अखिल गोगोई को तत्काल रिहा किया जाए और उन पर थोपे सारे मनगढ़ंत आरोप वापिस लिए जाए! हम KMSS और उनकी साथी संगठनों से जुड़े युवा नेता बिट्टू सोनोवाल, धैज्य कुँवर और मानस कुँवर की रिहाई की भी मांग करते हैं। आसाम के इन युवा लोगों के जज़्बे को हम सलाम करते हैं, जो जबर्दस्त दमन के बावजूद, निडरता से सांप्रदायिक और फ़ासीवादी व्यवस्था और उसके विभाजनकारी क़ानूनों से टक्कर ले रहे हैं !
जैसा कि सब जानते हैं, अखिल गोगोई को 12 दिसम्बर 2019 को जोरहट से गिरफ़्तार कर के, 10 दिन के लिए राष्ट्रीय जाँच संस्था (NIA) की हिरासत में दिल्ली भेज दिया गया था और उसके बाद 26 दिसम्बर तक गुवाहाटी सेंट्रल जेल में रखा गया था। KMSS सचिव धैज्य कुँवर और बिट्टू सोनोवाल, जो एक लोकप्रिय लोकतांत्रिक छात्र संगठन, छात्र मुक्ति संग्राम समिति के अध्यक्ष हैं, 13 दिसम्बर को गिरफ़्तार हुए और गुवाहाटी केन्द्रीय कारागार में रखे गए। 7 जनवरी को इन दोनों को नाम अखिल गोगोई वाले झूठे UAPA केस में जोड दिया गया और अभी वो NIA की हिरासत में कामरूप जिले में हैं। मानस कुँवर को 13 दिसम्बर को गिरफ़्तार किया गया, बाद में उन्हें छोड कर फ़िर जनवरी के अंत तक, UAPA के तहत, वैसे ही आरोप थोपकर, दोबारा गौहाटी NIA न्यायालय के ज़रिए गिरफ़्तार किया गया। इसके पहले, NIA 90 दिनों के अंदर आरोप पत्र दाखिल कर पाने में असफ़ल रहा था, जिसकी वज़ह से अखिल को छोड़ा जाना लाज़मी था, पर उनके ऊपर तुरंत ही, दूसरे प्रकरण लगा कर फ़िर से गिरफ़्तार कर लिया गया।
अखिल ने अब तक तीन मामलों, जो सिवासागर थाना, डिब्रूगढ़ थाना और गौहाटी अपराध शाखा के अंदर आते हैं, में ज़मानत ले ली है, पर उन्हे जेल में बंद रखने की मंशा से, बार-बार उनके उपर बेहूदा आरोप लगाए जा रहे हैं। हाल का एक ऐसा ही आरोप 28 मई का है, जिसमें अखिल के उपर 12 दिसम्बर को ‘चबुआ में एक सर्कल ऑफ़िस, एक पोस्ट ऑफ़िस और एक बैंक में आग लगाने’ का आरोप लगाया गया है। इन छह महीनों की हिरासत के दौरान इसी तरह की कारगुज़ारी चल रही हैं, जिसने ‘मुकदमे’ के ढोंग को ही सज़ा में बदल दिया है! इस सब कारस्तानी में कानूनी प्रक्रिया का घोर दुरुपयोग और न्याय की प्रक्रिया का एक मज़ाक बनना बड़ा साफ़ नज़र आता है, वैसे ही जैसे सरकार इस कोविड संकट के समय में भी ‘दिल्ली दंगों की जाँच’ के बहाने मुस्लिम समुदाय और छात्रों के बुरी तरह पीछे पड़ी हुई है और भीमा-कोरेगाँव मामला जिसमें 11 सामाजिक कार्यकर्ता (जिनमें से कुछ 60-80 साल के हैं) को 2 सालों से कैद किया गया है !
केंन्द्र सरकार के साथ मिलकर, असम सरकार पुरी कोशिश में है कि किसी तरह ये दिखा दे कि अखिल और KMSS/SMSS के नेतृत्व की ‘माओवादीओं से तार’ जुड़े हुए हैं, और ‘देश के खिलाफ़ की युद्ध की योजना’ करते हुए वो असम में सक्रिय हैं’! सरकार और राष्ट्रीय जाँच संस्था (NIA) अभी तक इस को साबित करने के लिए एक भी पुख्ता सबूत जुटाने या हिरासत में लिए नेताओं के खिलाफ़ कोई भी आरोपों को साबित करने में असफ़ल रही है। अखिल के उपर अब NIA के तहत 5 मामले हैं और बाकी 3 लोग अभी तक अलग-अलग पोलिस स्टेशन में दर्ज़ हुए मामलों में ज़मानत नहीं ले पाए हैं।
कोविड-19 महामारी के चलते, जेल के सुरक्षा उपाय और भी बिगड़ गए हैं और हिरासत में लोगों को मिलने वाली न्यूनतम सुविधाएँ खत्म हो गई हैं। गौहाटी सेंट्रल जेल में एक कैदी के कोविड पॉजिटिव होने के बाद भी अधिकारी/ शासन कोई खास कदम नहीं उठा रहा, जो राजनैतिक कैदिओं को ज्यादा दंडित करने के लिए जानबूझ कर की हुई कोशिश लगती है। अखिल के स्वास्थ में भी खराब होती जा रही है। 25 जून को, गौहाटी जेल के 1200 कैदिओं ने जेल में महामारी के चलते, लगातार खराब होते हालात को लेकर प्रदर्शन किया और ये मांग भी रखी कि अखिल गोगोई और उनके साथिओं को रिहा किया जाए।
सरकार, जो पूरी तरह से सांप्रदायिक नागरिकता संशोधन कानून (CAA) के खिलाफ़ असम में उठे लोकप्रिय आंदोलन के सामाजिक पहलू से हक्की-बक्की रह गई थी, उसने विविध समुदायों के साथ काम करती, संघीय ढांचे, सरकारी संसाधनों और सरकारी दमन को लेकर सवाल उठाती, सच बोलने वाली आवाज़ों और संगठनों को निशाने पर लेना शुरु कर दिया, जिन्होंने राज्य सरकार को प्रवासियों के मुद्दे से जुड़े सवालों के न्यायोचित और लोकतांत्रिक ढंग से जवाब देने की मांग उठाई।
इन कार्यकर्ताओं की गिरफ़्तारी सरकार द्वारा कृषक मुक्ति संग्राम समिति, छात्र मुक्ति संग्राम समिति, चाह श्रमिक मुक्ति संग्राम समिति, नारी मुक्ति संग्राम समिति और ऐसी सभी लोकतांत्रिक संगठनों के उपर सीधा-सीधा आक्रमण है क्योंकि ये संगठन सरकार की विफ़लताओं पर सवाल उठाती हैं और गैर-बराबरी के जटिल मुद्दों के साथ पुरी ईमानदारी के साथ निपटने की कोशिश करती हैं। ये शर्मनाक बात है कि व्यापक विरोध के चलते और संयुक्त राष्ट्र के जरिए हुई अंतरराष्ट्रीय स्तर पर निंदा के बाद भी सरकार ने इन सामाजिक कार्यकर्ताओं को हिरासत में रख रखा है।
लापरवाही से बने विनाशकारी विशाल बांध, ऐसी विकास परियोजनाएं जो स्थानीय संसाधनों को निचोड कर स्थानीय आबादी और पर्यावरण को होते नुकसान को बढावा देती हैं, सामान्य नागरिकों को परेशान करने के लिए गैर कानूनी टोल नाकों का खोलना, ऐसे अनेकों मुद्दों पर अखिल और KMSS हमेशा एक मजबूत जन-आवाज रहे है और इसीलिए वो फ़ासीवादी सरकार के निशाने पर है, खासतौर से जब विधानसभा के चुनाव आने वाले हों और सरकार की विफ़लाताएं और तमाम कमियां सबके सामने साफ़ नज़र आ रही हों |
KMSS/ ऐसे बहुत से संघर्षों में आगे रहा है, जहां उन्होंने सूचना के अधिकार (RTI) का उपयोग करते हुए भूमिहीन किसानों के अधिकार के लिए, ग्रामीण और शहरी वंचित समुदाय के लिए जमीन पर जुड कर काम करते रहे | मूलनिवासी और आदिवासीओं को वंचित करके, अपने और कॉर्पोरेट समुदाय के फ़ायदे को आगे करने वाली सरकार के नीतियों के विरोध में भी KMSS ने लोगों को सचेत किया, संगठित किया। कॉंग्रेस शासन के समय भी अखिल अनेक घोटालों को उजागर करने और भ्रष्टाचार के विरोध में असम में जन आंदोलन शुरु करने में शामिल था। राष्ट्रीय जाँच एजेंसी (NIA) ने जब अखिल के घर पर छापा मारा तो वो ऐसे कई दस्तावेज़ों की तलाश में थी जिसमें अनेक राजनैतिक नेता और बड़े व्यापारियों के नाम थे।
जन आंदोलनों का राष्ट्रीय समन्वय मांग करता है कि अखिल गोगोई, बिट्टू सोनोवाल, धैज्य कुँवर और मानस कुँवर को तत्काल रिहा किया जाए और उन पर लगाए सारे झूठे आरोप वापस लिए जाएं। हम गुवाहाटी उच्च न्यायालय की संपूर्ण पीठ से ये मांग करते हैं कि वो इस मामले में तुरंत हस्तक्षेप करें, जिसमें बेहद देरी और कानूनी प्रक्रिया की धज्जियाँ उड़ाई गयी हैं, और सारे सामाजिक कार्यकर्ताओं को बिना शर्त रिहा किया जाए।
हम एकजुट हो कर असम की स्वतंत्र और लोकतांत्रिक संगठनों और सामाजिक कार्यकर्ताओं के साथ खड़े हैं, जो भा.ज.पा के सांप्रदायिक, शोषक और विनाशकारी नीतियों और शोषण को बढावा देने वाली अन्य राजनैतिक पक्षों के खिलाफ़ संवैधानिक मूल्यों, अमन-शांति और मानव अधिकारों में गहरा विश्वास रखते हुए, प्रतिरोध कर रहे हैं !
हम सरकार से मांग करते हैं कि वो इस शिकंजा कसने वाले विद्वेषपूर्ण अध्याय को विराम दे और राज्य के लोगों से गंभीर और सार्थक संवाद स्थापित करके, लंबे समय से चलते इन जटिल मुद्दों का समाधान मैत्रीपूर्ण तरीके से खोजे, जिसमें समाज के सभी हिस्सों का, खासतौर से हाशिये पर धकेले गए और नागरिकता से वंचित लोगों और समुदायों का अधिकार कायम हो।
अधिक जानकारी के लिए संपर्क करें: ई-मेल: napmindia@gmail.com
Image Credit: The Telegraph Online