झूठ, नफ़रत और हिंसा से भरी हिन्दू राष्ट्र परियोजना का विरोध करो !

बाबरी मस्जिद के आपराधिक विध्वंस के लिए जिम्मेदार लोगों पर कानूनी कार्यवाही हो

5 अगस्त, 2020: जन आंदोलनों का राष्ट्रीय समन्वय अयोध्या में राम मंदिर के निर्माण की शुरुआत पर गहरी पीड़ा व्यक्त करता है, जिसके लिए आज भूमि पूजन और आधारशिला रखी गई। प्रधान मंत्री, उत्तर प्रदेश प्रशासन और उसके मुख्य मंत्री का इस समारोह में शामिल होना, हालांकि इन कार्यालयों की संवैधानिक जिम्मेदारी है कि वे धर्म-निरपेक्ष रहें, यह हमारे संवैधानिक सिद्धांतों पर एक गहरी चोट है।

‘इस दिन’ के महत्व को तो हम सभी अच्छे से जानते हैं – एक वर्ष पहले, – 5 अगस्त, 2019 को भारत के एकमात्र मुसलमान बाहुल्य राज्य, जम्मू और कश्मीर से अनुच्छेद 370 हटा कर, उसकी राजनैतिक स्वतंत्रता छीन ली गई। ऐसी स्थिति में, 5 अगस्त के दिन आधारशिला रखे जाने का बहुत सांकेतिक महत्व है, कि यह देश जल्द ही ‘हिन्दू राष्ट्र’ बनने की ओर अग्रसर है। अभी, सर्वोच्च न्यायालय में एक मामला लंबित है जिसमें हमारे संविधान से ”समाजवादी” और ”धर्म-निरपेक्ष” शब्द हटा दिए जाने की प्रार्थना की गई हैं !

आज का दिन उस हिसक प्रक्रिया के अंत का सूचक है, जिसके माध्यम से एक मस्जिद को ज़बरदस्ती एक मंदिर में बदल जा रहा है, जिसके पीछे सड़कों पर हिंसा, भारी संख्या में लोगों का एकत्रीकरण और निर्मित इतिहास है, जिसमें पुलिस और न्यायालयों तथाकथित धर्म-निरपेक्ष राजनीतिक पार्टियों की भी सहभागिता शामिल है। पिछले वर्ष, संदिग्ध तर्क के आधार पर  सर्वोच्च न्यायालय ने पूरे विवादित ढांचे को “हिन्दू पार्टी’ को सौंप दिया। दीवानी मामले को आपराधिक मामले से अलग कर दिया गया और “हिन्दू दावे”  के पीछे जो हिंसा और व्यवधान हुआ था, उसे न सिर्फ पूरी तरह से नज़रंदाज़ कर दिया गया, बल्कि वैध भी ठहरा दिया गया!

यह दर्ज करने के बावजूद कि 1994 तक ‘विवादित स्थल’ पर नमाज़ अदा की गई थी और यह स्वीकारने के बावजूद कि उसी वर्ष वहाँ राम की मूर्ति छिप कर स्थापित की गई थी,1992 में मस्जिद को गैर-कानूनी तरीके से ध्वस्त किया गया और बाबरी मस्जिद कोई मंदिर तोड़ कर नहीं बनाई गई थी, सर्वोच्च न्यायालय ने उल्लंघन करने वालों को जिम्मेदार नहीं ठहराया और इसके बजाए उन्हें ‘विवादित भूमि’ पर मंदिर बनाने की इजाज़त दे कर उन्हें पुरस्कृत किया! यह स्पष्ट रूप से पक्षपाती निर्णय, उन ऐसे निर्णयों की कड़ी को आगी बढ़ाता है (जैसे कि, 1994 का इस्माइल फ़ारूकी फैसला और 2010 का इलाहबाद फैसला) और प्रशासनिक कदम (जैसे कि, 1992 में चुपचाप मस्जिद को तोड़ने की इजाज़त दे देना), जिनके कारण नियमित रूप से “मुसलमान” पक्ष कमज़ोर पड़ता चल गया।

सर्वोच्च न्यायालय का 2019 का फ़ैसला न सिर्फ पिछले फ़ैसलों के समस्यप्रद तर्कों को स्वीकारता है, बल्कि हिंदुओं और मुसलमानों के बीच ‘सभ्यतागत संघर्ष’ के हिंदुत्ववादी कथन और इतिहास की विकृतियां, जो कि राम मंदिर की मांग में केन्द्रीय रही हैं, को भी वैधता प्रदान करता है। वास्तव में इतने वर्षों से न्यायालय और प्रशासन लगातार धर्म-निरपेक्ष मूल्यों और संवैधानिक सिद्धांतों से धोखा अकरते आए हैं।

हिन्दू राष्ट्र आज हमारे चारों ओर फैला हुआ है। राम मंदिर का भव्य उद्घाटन सरकार के लिए प्राथमिकता है, जबकि देश कई भीषण समस्याओं, जैसे कि भुखमरी, स्वास्थ्य और आर्थिक संकट की स्थितियों से गुजर रहा है और जीवन व आजीविकाएं चुनौतियों का सामना कर रहे हैं, विशेषकर पूर्वी और उत्तर-पूर्वी राज्य जहां बाढ़ के कारण भीषण तबाही हुई है। कोविड-19 स्थितियों के बावजूद आज आयोजित होने वाली सामूहिक सभा, एक साठ -वर्षीय प्रधान मंत्री की मौजूदगी में ‘राष्ट्रीय गौरव’ बताई जा रही है, जबकि तब्लीगी जमात द्वारा आयोजित सभाओं को हिंदुत्व के राजनेता और उनके अभिमानी मीडिया “कोरोना-जिहाद” का नाम देते हैं!

कोविड महामारी का सामना करने के लिए दिए और थालियों का इस्तेमाल किया जाता है, जबकि गिरती हुई स्वास्थ्य व्यवस्था को सुदृढ़ करने का कोई प्रयास नहीं किया जाता। नई शिक्षा नीति ‘भारतीयकरण’ की बात करती है, जबकि शिक्षा के क्षेत्र में सार्वजनिक कार्यक्षेत्र कमज़ोर हो रहा है और शिक्षा व्यवस्था में और उसके माध्यम से  बढ़ाई जा रही सामाजिक-आर्थिक असमानताओं को महत्वपूर्ण मुद्दों की मान्यता तक नहीं मिलती। एक के बाद एक करक्षेत्र का निजीकरण हो रहा है; बिजली से लेकर पर्यावरणीय कानूनों से लेकर श्रमिक कानूनों को कमज़ोर किया जा रहा है, आदिवासी बाहुल्य इलाकों में पूरे कोयला खंड निजी कंपनियों के लिए नीलामी के लिए खोल दिए गए हैं और एक तरह से पूरे देश को बिक्री के लिए खड़ा कर दिया गया है, और ये सत्ताधारी खुद को राष्ट्रवादी कहते हैं! इस प्रकार ‘हिन्दू राष्ट्र’ न सिर्फ साम्प्रदायवादी है, बल्कि कई मायनों में जनता-विरोधी भी है।

फासीवादी और कॉर्पोरेट हिन्दू राष्ट्र के विरुद्ध जंग को उसके नाम में फैलाई गई बुराइयों के लिए न्याय की मांग के बिना नहीं लड़ जा सकता, जिसमें झूठ, छल और हिंसा के माध्यम से बाबरी मस्जिद को राम मंदिर में बदला जाना भी शामिल है। यह जंग और भी मुश्किल हो जाती है जब न्यायालय, प्रशासन और मीडिया का अधिकांश हिस्सा और तथाकथित धर्म-निरपेक्ष पार्टियां, जिनके मुखौटे तेजी से गिरते नज़र आ रहे हैं, भी इसमें सहभागी और विश्वासघात भूमिका निभाती हैं!

5 अगस्त को हम राष्ट्रीय विरोध दिवस मानते हैं, उच्चतम कार्यालयों और संस्थानों द्वारा लोकतांत्रिक और संवैधानिक सिद्धांतों और अधिकारों के अक्षम्य उल्लंघन का एक दिन, जो कि इन मूल्यों को कायम रखने के लिए जिम्मेदार हैं।

हम उन असंख्य आम लोगों के साथ खड़े रहने, उनके सह-अस्तित्व की संस्कृति को सशक्त करने, गरीब, कामकाजी और हाशियकृत लोगों की असली जरूरतों – नौकरियां, आजीविका, गरिमा, जीवन और काम  की सुरक्षा – के लिए संघर्ष करने का प्राण लेते हैं – और हम धर्म को संप्रदायवादी संघर्ष,  लोगों के अहम मुद्दों से ध्यान भटकाने और हमारे धर्मनिरपेक्ष ताने-बाने और संवैधानिक लोकतंत्र को नष्ट करने के लिए इसका दुरुपयोग करने की अनुमति नहीं देंगे।

हम सत्ता धारियों के हर प्रकार के पूर्वाग्रहों, कानूनी विकृतियों, हिंदुत्ववादी घृणा व हिंसा को ‘ सामान्य’ बनाने और जहरीले तरीकों से  फासीवाद का इतिहास मिटाने के प्रयासों का लोकतान्त्रिक तरीके से विरोध करेंगे, उसे चुनौती देंगे और सभी ताकतों पर सवाल उठाना जारी रखेंगे।

जन आंदोलनों का राष्ट्रीय समन्वय (NAPM)

NAPM India