संगतिन किसान मज़दूर संगठन की मेंबर, और जन-आंदोलनों का राष्ट्रीय समन्वय की राष्ट्रीय संयोजक ऋचा सिंह को उत्तर प्रदेश पुलिस द्वारा मनमाने ढंग से 7 जनवरी, 2021 से घर में नज़रबंद रख जाने की NAPM घोर निंदा करता है
कार्यकर्ताओं और प्रदर्शनकारियों को नज़रबंद करने से किसान–आंदोलन कुचला नहीं जा सकता यू.पी सरकार संवैधानिक अधिकारों की अवमानना बंद करे
9 जनवरी, 2021: NAPM संगतिन किसान मज़दूर संगठन की संस्थापक-सदस्य, NAPM की राष्ट्रीय संयोजक और सीतापुर, उत्तर प्रदेश में तीन दशकों से महिलाओं, किसानों, मज़दूरों और दलितों के साथ काम कर रहीं कर्मठ कार्यकर्ता ऋचा सिंह को मनमाने ढंग से नज़रबंद किये जाने पर रोष व्यक्त करता है। यूपी पुलिस ने उन्हें 7 जनवरी की शाम से बिना उपयुक्त स्पष्टीकरण के नज़रबंद किया हुआ है।
उसी दिन राज्य के दूसरे हिस्से में, कुछ साथी- प्रतिनिधियों ने बनारस मंडलायुक्त से मुलाक़ात की और उनके समक्ष पुलिस की शिकायत दर्ज की कि उन्हें बुलाया जा रहा है, उनके घरों में पुलिस पहुँच रही है और उन्हें ‘दिल्ली जाने और किसान आंदोलन को समर्थन देने’ के लिए परेशान कर रहीं है। एडीएम ने कार्यकर्ता रामजनम को गुंडा एक्ट के तहत नोटिस भी जारी किया है और उन्हें 15 जनवरी को कोर्ट के सामने पेश होना है। प्रतिनिधि-दल ने कृपा वर्मा, फ़ज़्ल-उर्रहमान अंसारी, और लक्ष्मी प्रसाद को भी पोलिस द्वारा इसी तरह उत्पीड़ित किये जाने कि शिकायत दर्ज की।
हम इन घटनाओं को असंतोष की आवाज़ों को दबाने, और कार्यकर्ताओं और नागरिक समाज के सदस्यों द्वारा विरोध प्रदर्शनों में भागीदारी के अधिकार के हनन के रूप में देखते हैं। इन घटनाओं को मीडिया और आम-नागरिकों की नज़र में लाये जाने की और सम्बंधित अधिकारीयों की जवाबदेही तय करने की ज़रूरत है। यूपी सरकार मनमाने ढंग से क़ानून व्यवस्था का हवाला देकर ऐसी अराजक कार्यवाहियाँ नहीं कर सकती।
ऋचा की नज़रबंदी के हालात:
7 जनवरी को ऋचा सिंह को सीतापुर, यूपी में पुलिस द्वारा तब रोका गया जब वे किसान आंदोलन के समर्थन में ट्रेक्टर रैली में शामिल होने जा रही थीं। अधिकारियों से बातचीत के बाद उन्हें रैली में शामिल होने दिया गया लेकिन इस दौरान सादा-कपड़ों में दो पुलिस-कर्मी उनके साथ मौजूद रहे। उसी दिन शाम को उन्हें अपने घर में नज़रबंद कर दिया गया और लखनऊ में इलाज के लिए जाने से रोक दिया गया। सीतापुर कोतवाल, मजिस्ट्रेट और सीओ उनके घर पहुंचे मगर उन्हें नज़रबंद करने के कारणों पर स्पष्ट जानकारी देने से बचते रहे।
नज़रबंद करने के कारणों को लेकर अस्पष्टता:
ऋचा को नज़रबंद करने के पीछे क्या कारण है यह बार-बार पूछे जाने पर भी अधिकारियों ने केवल इतना संकेत दिया कि उन्हें ‘कुछ जानकारी’ प्राप्त हुई है और उन्हें संदेह है कि ऋचा दिल्ली में किसान-आंदोलन में शामिल होंगी। यह जानकारी क्या है, इस विषय में ऋचा को कुछ बताया नहीं गया है और यह नज़रबंद होने का कारण जानने के उनके नागरिक-अधिकार का हनन है। ऐसा भी प्रतीत होता है कि इस नज़रबंदी का कोई ऑर्डर पुलिस के पास नहीं है।
उनके द्वारा बार बार बताये जाने कि वे लखनऊ में अपने इलाज के लिए जाना चाहती हैं, दिल्ली के किसान-आंदोलन में नहीं, का भी अधिकारियों पर कोई प्रभाव नहीं पड़ा। किसान आंदोलन में शामिल होना भी अपने आप में नज़रबंदी का कारण नहीं हो सकता।
विरोध का राज्य द्वारा दमन:
ये सभी घटनाएं एक व्यापक पैटर्न का हिस्सा हैं जिसके तहत उत्तर प्रदेश और अन्य राज्यों में लोकतान्त्रिक अधिकारों के कार्यकर्त्ता और किसान संगठनों के नेताओं को मनमाने ढंग से हिरासत में लिया जा रहा है। यह घटनाएं विरोध की आवाज़ों को दबाने की प्रवृत्ति की तरफ इशारा करती हैं और सर्वोच्च न्यायलय के मत के ख़िलाफ़ हैं जिसमें कहा गया है कि विरोध-प्रदर्शन एक संवैधानिक अधिकार है। तमाम राज्यों के नेताओं और कार्यकर्ताओं को नज़रबंद कर दिया गया है ताकि वे शुरुआत से ही किसान आंदोलन को समर्थन न पहुंचा सकें- न अपने क्षेत्र में विरोध प्रदर्शन कर और न दिल्ली पहुँच कर। आम तौर पर ऐसा कोरोना वायरस के फैलाव को रोकने के नाम पर किया जाता है, मगर इस गृह-बंदी से सरकार की विरोध की आवाज़ों को कुचलने की मंशा साफ़ तौर पर दिख रही है।
NAPM मांग करता है कि:
क) यूपी पुलिस तुरंत ऋचा सिंह को नज़रबंदी से आज़ाद करे और उन्हें इलाज और आवाजाही की स्वतंत्रता दे।
ख) यूपी पुलिस और सरकार उन्हें आने–जाने और इलाज करवा पाने के अपने संवैधानिक अधिकार से 48 घंटों से अधिक वंचित रखने का स्पष्टीकरण और मुआवज़ा प्रदान करे।
ग) तमाम राज्यों के प्राधिकारी विरोध और सरकार से प्रश्न करने के अधिकार समेत नागरिकों के अधिकारों की रक्षा करें।
NAPM ऋचा सिंह, रामजनम आदि सभी कार्यकर्ताओं के साथ एकजुटता व्यक्त करता है और नागरिकों, मीडिया व कार्यकर्ताओं से अपील करता है कि नागरिकों के संवैधानिक अधिकारों में इस तरह के हस्तक्षेप के ख़िलाफ़ खड़े हों।
मेधा पाटकर (नर्मदा बचाओ आंदोलन, जन–आंदोलनों का राष्ट्रीय समन्वय); डॉ सुनीलम, आराधना भार्गव (किसान संघर्ष समिति), राजकुमार सिन्हा (चुटका परमाणु विरोधी संघर्ष समिति); पल्लव (जन–आंदोलनों का राष्ट्रीय समन्वय, मध्य प्रदेश)
अरुणा रॉय, निखिल डे, शंकर सिंह (मज़दूर किसान शक्ति संगठन); कविता श्रीवास्तव (PUCL); कैलाश मीणा (जन–आंदोलनों का राष्ट्रीय समन्वय, राजस्थान); प्रफुल्ल समांतर (लोक शक्ति अभियान)
लिंगराज आज़ाद (समजवादी जन परिषद्, नियमगिरि सुरक्षा समिति); लिंगराज प्रधान, सत्य बंछोर, अनंत, कल्याण आनंद, अरुण जेना, त्रिलोचन पुंजी, लक्ष्मीप्रिया, बालकृष्ण, मानस पटनायक (जन–आंदोलनों का राष्ट्रीय समन्वय, ओडिशा)
संदीप पांडेय (सोशलिस्ट पार्टी ऑफ़ इंडिया); ऋचा सिंह, रामबेटी (संगतिन किसान मज़दूर संगठन, सीतापुर); राजीव यादव, मसीहुद्दीन (रिहाई मंच, लखनऊ); अरुंधति धुरु, ज़ैनब ख़ातून (महिला युवा अधिकार मंच, लखनऊ); सुरेश राठोड (मनरेगा मज़दूर यूनियन, वाराणसी),अरविन्द मूर्ति, अल्तमस अंसारी (इंक़लाबी कामगार यूनियन, मऊ), जाग्रति राही (विज़न संसथान, वाराणसी), सतीश सिंह (सर्वोदयी विकास समिति, वाराणसी); नकुल सिंह साहनी (चल चित्र अभियान)
पी चिन्नय्या (APVVU); रामकृष्णं राजू (यूनाइटेड फोरम फॉर RTI एंड NAPM);चकरी (समालोचना); बालू गाडी, बापजी जुव्वाला (जन–आंदोलनों का राष्ट्रीय समन्वय, आंध्र प्रदेश); जीवन कुमार, सईद बिलाल (ह्यूमन राइट्स फोरम); पी शंकर (दलित–बहुजन फ्रंट); विस्सा किरण कुमार , कोंदल (रयथु स्वराज्य वेदिका); रवि कनगंटी (रयथु, JAC ); आशालता (मकाम); कृष्णा (TVV); एम् वेंकटय्या (TVVU ); मीरा संघमित्रा (जन–आंदोलनों का राष्ट्रीय समन्वय, तेलंगाना)
सिस्टर सीलिया (डोमेस्टिक वर्कर यूनियन); मेजर जनरल (रिटायर्ड) एस जी वोमबतकेरे (जन–आंदोलनों का राष्ट्रीय समन्वय); नलिनी गौड़ा (KRRS); नवाज़, द्विजी गुरु, नलिनी, मधु भूषण, ममता, सुशीला, शशांक (जन–आंदोलनों का राष्ट्रीय समन्वय, कर्नाटक)
गाब्रिएल (पेन्न उरिमय इयक्कम, मदुरै); गीता रामकृष्णन (USWF); सुतंतिरण, लेनिन, इनामुल हसन, अरुल दोस, भारती, विकास (जन–आंदोलनों का राष्ट्रीय समन्वय, तमिल नाडु);
विलायोडी, सी आर नीलकंदन, कुसुमम जोसफ, शरथ चेल्लूर, विजयराघवन, मजींदरन, मगलीन (जन–आंदोलनों का राष्ट्रीय समन्वय, केरल)
दयामनी बरला (आदिवासी– मूलनिवासी अस्तित्व रक्षा समिति); बसंत, अलोक, डॉ लियो, अफ़ज़ल, सुषमा, दुर्गा, जीपाल, प्रीति रंजन, अशोक (जन–आंदोलनों का राष्ट्रीय समन्वय, झारखण्ड)
आनंद माज़गाओंकर, स्वाति, कृष्णकांत, पार्थ (पर्यावरण सुरक्षा समिति); नीता महादेव, मुदिता (लोक समिति ); देव देसाई, मुजाहिद, रमेश, अज़ीज़, भरत (जन–आंदोलनों का राष्ट्रीय समन्वय, गुजरात)
विमल भाई (माटु जन संगठन); जबर सिंह, उमा (जन–आंदोलनों का राष्ट्रीय समन्वय, उत्तराखंड)
मान्शी, हिमशि, हिमधारा (जन–आंदोलनों का राष्ट्रीय समन्वय, हिमाचल प्रदेश)
एरिक, अभिजीत, तान्या, कैरोलिन, फ्रांसेस्का (जन–आंदोलनों का राष्ट्रीय समन्वय, गोवा)
गौतम बंदोपाध्याय (नदी घाटी मोर्चा); कलादास डहरिया (RELAA); अलोक, शालिनी (जन–आंदोलनों का राष्ट्रीय समन्वय, छत्तीसगढ़)
समर, अमिताव, बिनायक, सुजाता, प्रदीप, प्रसारुल, तपस, ताहोमिना, पबित्र, क़ाज़ी मुहम्मद, बिश्वजीत, आयेशा, रूपक, मिलान, असित, मीता, यासीन, मतीउर्रहमान, बाइवाजित (जन–आंदोलनों का राष्ट्रीय समन्वय, पश्चिम बंगाल)
सुनीति, संजय, सुहास, प्रसाद, मुक्त, युवराज, गीतांजलि, बिलाल, जमीला (घर बचाओ घर बनाओ आंदोलन); चेतन साल्वे (नर्मदा बचाओ आंदोलन); परवीन जहांगीर (जन–आंदोलनों का राष्ट्रीय समन्वय, महाराष्ट्र)
जे इस वालिया (जन–आंदोलनों का राष्ट्रीय समन्वय, हरियाणा)
गुरुवंत सिंह, नरबिंदर सिंह (जन–आंदोलनों का राष्ट्रीय समन्वय, पंजाब)
कामायनी, आशीष रंजन (जन–जागरण शक्ति संगठन); महेंद्र यादव (कोसी नवनिर्माण मंच)
राजेंद्र रवि (जन–आंदोलनों का राष्ट्रीय समन्वय); भूपेंद्र सिंह रावत (जन संघर्ष वाहिनी); अंजलि, अमृता जोहरी (सतर्क नागरिक संगठन); संजीव कुमार (दलित आदिवासी शक्ति अधिकार मंच); अनीता कपूर (दिल्ली शहरी महिला कामगार यूनियन); सुनीता रानी ( नेशनल डोमेस्टिक वर्कर यूनियन); नन्हू प्रसाद (नेशनल साइकिलिस्ट यूनियन); मधुरेश, प्रिया, आर्यमन, दिव्यांश, ईविता, अनिल (दिल्ली सॉलिडेरिटी ग्रुप); एम् जे विजयन (PIPFPD)
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