एन.ए.पी.एम युथ एक्शन टु स्टॉप अडानी (यास्ता) के वैश्विक अभियान का समर्थन करता है

2 फरवरी, 2021: जन आंदोलनों का राष्ट्रीय समन्वय (एन.ए.पी.एम) भारत और ऑस्ट्रेलिया के युवा समूहों की 

सराहना और समर्थन करता है, जिन्होंने जनविरोधी बहुराष्ट्रीय कार्पोरेट घरानों के खिलाफ आदिवासियों, मूल निवासियों, किसानों, श्रमिक वर्ग औैर अन्य प्रताड़ित समुदायों के लोगों के चल रहे संघर्षां की तरफ लोगों का ध्यान खिंचाने के लिए 27 जनवरी से 2 फरवरी 2021 तक ग्लोबल वीक ऑफ एक्शन #स्टॉपअडानी का आयोजन यास्ता (यूथ एक्शन टु स्टॉप अडानी) के बैनर तले किया और हजारों युवाओं ने मिलकर लाखों लोगों का ध्यान कार्पोरेट जगत के अपराधों व वायु परिवर्तन संकट की तरफ दिलाया।

इस समय देश में चल रहे ऐतिहासिक किसान आंदोलन ने गहरे कार्पोरेट-सत्ता जुड़ाव, जो हमारी राजनीतिक अर्थव्यवस्था के नवउदारवादी ढांचे के लिए जरूरी है, औैर कैसे अडानी व अंबानी इस ‘ढांचागत महामारी‘ के केंद्र में हैं, को सामने ला दिया है। ऐसे में, यह जरूरी हो जाता है कि देश और दुनिया भर में चल रहे स्थानीय संघर्षों – जिन्हें बड़े सत्ता समर्थक मीडिया घरानों की ओर से अदृश्य बना दिया जाता है और समाज के आत्मसंतुष्ट वर्ग जिनकी अनदेखी करते हैं – को रेखांकित किया जाए। उल्लेखनीय है कि सबसे बड़े घरानों में से एक अडानी ने अपना कारोबार बेतहाशा बढ़ाया है और हर क्षेत्र में प्रवेश किया है व यह प्रगति नरेंद्र मोदी के 2014 में प्रधानमंत्री बनने के समानांतर है।

2020 कोविड लॉकडाऊन के दौरान जहां लाखों श्रमिक व मध्यम वर्ग के लोगों ने रोजगार गंवाया औैर दुनिया ने अभूतपूर्व आजीविका व स्वास्थ्य संकट का सामना किया, अडानी जैसे कार्पोरेट 21.5 बिलियन डॉलर कमाकर और अमीर हुए। आय में यह उछाल अन्य सभी घरेलु कार्पोरेट घरानों की तुलना में सर्वाधिक है। अरबपतियों औेर औद्योगिक घरानों के लिए महामारी एक अवसर की तरह आई, जिसमें वह दुनिया भर में वंचित समुदायों का औेर शोषण कर सकते हैं व उन्हें कुचल सकते हैं। उनकी मदद करने के लिए सत्तारूढ़ राजनीतिक माफिया आगे आये और राज्य सत्ता ने विधायिका से लेकर पुलिस हिंसा तक हर उपलब्ध साधनों का इस्तेमाल कर, जन संघर्षों औैर अभियानों को कुचलने में कोई कसर नहीं छोड़ी|

अडानी के बड़े बंदरगाह, कोयला खदान औैर अन्य कार्बन-इन्टेंसिव उद्योग उससे होने वाले नुकसान की कोई परवाह नहीं करते। कृषि जमीनों, तटों जैसे संवेदनशील पर्यावरण, वनों आर्द्रभूमि, जीवन के मूल तौर-तरीकों, श्रमिक वर्ग के सम्मान व अधिकारों को बेलगाम विकास की राह में दी जाने वाली आवश्यक ‘बलि‘ माना जाता है। विकास किसका औैर किस कीमत पर, सवाल है जो इस देश के जनांदोलन दशकों से उठा रहे हैं लेकिन पूंजीवादी व्यवस्था को कोई फर्क नहीं पड़ता और वैश्विक पर्यावरण संकट बढ़ ही रहा है और सर्वाधिक कमजोर आबादियां प्रभावित होती हैं।

बिना किसी जवाबदेही के आर्थिक व राजनीतिक दबदबा रखने वाले शोषणकारी कार्पोरेट को चुनौती देने की आवश्यकता महसूस करते हुए, दुनिया भर के युवा समूहों ने हाथ मिलाया और अडानी के खिलाफ ग्लोबल वीक ऑफ एक्शन का आयोजन किया, जिसके तहत स्थानीय संघर्षों के साथ एकजुटता प्रकट किया गया और समाज के विविध वर्गों में जागरूकता फैलाई गई कि वह जनांदोलनों के समर्थन में आगे आएं और अडानी जैसे साम्राज्यों का प्रतिरोध करें।

‘पास द माईक : अनहर्ड वॉयसेस फ्रॉम अडानी साईट्स’ के जरिये यास्ता ने उन आवाजों को सुनना संभव बनाया जो जमीन पर अडानी की अति के खिलाफ प्रतिरोध की आवाजें हैं। गोड्डा (झारखंड), कट्टुपल्ली (तमिलनाडु), गोवा, मुंदरा (गुजरात), विज़िंजम (केरल), कवलाप्परा (केरल) से लेकर दिल्ली में किसान आंदोलन औैर जुरू कंट्री (क्वीन्सलैंड, ऑस्ट्रेलिया) के लोग कार्पोरेट उत्पीड़न के खिलाफ अपने संघर्षों के कारण एक हुए। उन्होंने मुख्यधारा के मीडिया को मजबूर किया कि वह उनके संघर्षों पर ध्यान दे। अन्य कार्यक्रमों में एक फिल्मोत्सव, पर्यावरण पर चर्चा शामिल थी और पर्यावरणीय/पारिस्थतिक विनाश पर विमर्श व प्रतिरोध की कहानियों को फैलाने के लिए संस्कृति का एक सशक्त उपकरण के रूप में इस्तेमाल किया गया।

एन.ए.पी.एम प्रभावित समुदायों के संघर्ष औैर अडानी के कई उपक्रमों, जिनमें से कुछ का यहां ज़िक्र किया गया है, के खिलाफ नागरिक कृति समितियों के प्रतिरोध का पूर्ण समर्थन करता है।

  • शेड्यूल-5 क्षेत्र में कोयला ब्लॉक के आबंटन को छत्तीसगढ़ के हसदेव अरांद क्षेत्र की आदिवासी ग्राम सभाओं का चुनौती देना।
  • झारखंड के हजारीबाग के आदिवासी व अन्य किसान जो पहले से कोयला खनन से बुरी तरह प्रभावित हैं, अब गोंदुलपारा कोल ब्लॉक अडानी को आबंटित किये जाने का विरोध कर रहे हैं।
  • झारखंड में गोड्डा के आदिवासी, अडानी के पॉवर प्लांट के लिए, जिनकी जमीनें छल से अधिग्रहित की गईं।
  • थिरुवल्लुर और चेन्नई, तमिलनाडु के मछुआरे अपनी आजीविका बचाने के लिए 53,000 करोड़ के कट्टुपल्ली बंदरगाह विस्तार परियोजना के खिलाफ और पुलीकट लेक को बचाने के लिए कड़ा संघर्ष कर रहे हैं।
  • विज़िंजम, केरल के मछुआरा समुदाय व अन्य स्थानीय लोगों ने अपनी तटीय आजीविका को अडानी के कंटेनर बंदरगाह की विनाशकारी खुदाई के कारण नष्ट होते देखा है और जमीनें खोई हैं।
  • किसान, नमक खेती श्रमिक और मछुआरा समुदाय जो मुंदरा, गुजरात में अडानी व टाटा पॉवर प्लांट से प्रभावित हुए हैं।
  • गोवा में कई कार्पोरेट को लाभ पहुंचाने के लिए रेलवे लाइन के डबल ट्रैकिंग, हाइवे विस्तार और मोलेम नेशनल पार्क व भगवान महावीर अभ्यारण्य से कोयला ढुलाई के लिए बिछाई जा रही नई विद्युत लाइन का विरोध हो रहा है।
  • ऑस्ट्रेलिया में प्रस्तावित कमाईकल कोल माईन के खिलाफ वांगन औेर जगालिंगो के आदिवासी लोग व नागरिक संघर्ष कर रहे हैं जिसके लिए अडानी भारतीय स्टेट बैंक से 500 करोड़ रुपये लेने की कोशिश कर रहे हैं।

कार्पोरेट लूट और नव-उदारवादी हमले के खिलाफ अपने संघर्षों को जारी रखते हुए हम युवा समूहों की इस महत्वपूर्ण पहल का स्वागत करते हैं ओर ‘सीमाओं’ से परे एकजुटता निर्माण की महत्वपूर्ण आवश्यकता को स्वीकार करते हैं खासकर ऐेसे समय में जब कार्पोरेटीकरण भी अंधाधुंध सीमा पार फैल रहा है और जीवन व लोकतांत्रिक ढांचों के लिए खतरा बन रहा है।

हम विभिन्न समकालीन आंदोलनों, चाहे किसान प्रतिरोध हो, नई शिक्षा नीती (NEP) के प्रति छात्रों का विरोध हो या पर्यावरण प्रभाव आँकलन अधिसूचना (EIA-2020) के खिलाफ रचनात्मक अभियान हो, में युवा लोगों की अमूल्य भूमिका को स्वीकार करते हैं औेर समानता, न्याय व लोकतंत्र हेतु चल रहे जनांदोलनों में उनकी सक्रिय भागीदारी का स्वागत करते हैं।

विश्व आर्द्रभूमि दिवस पर आज, आइये हम ‘विकासात्मक‘ हस्तक्षेप के कारण खतरे में पड़ी आर्द्रभूमि व अन्य जमीनों के संरक्षण की प्रतिज्ञा दोहराएं।

हम किसान आंदोलन से भी एकजुटता दोहराते हैं जो तीन कृषि कानून निरस्त करने के लिए है और प्रदर्शनकारी किसानों के खिलाफ सभी तरह की ज्यादतियों का विरोध करते हैं।

मेधा पाटकर (नर्मदा बचाओ आंदोलन, जनआंदोलनों का राष्ट्रीय समन्वय); डॉ सुनीलम, आराधना भार्गव (किसान संघर्ष समिति), राजकुमार सिन्हा (चुटका परमाणु विरोधी संघर्ष समिति); पल्लव (जनआंदोलनों का राष्ट्रीय समन्वय, मध्य प्रदेश)

अरुणा रॉय, निखिल डे, शंकर सिंह (मज़दूर किसान शक्ति संगठन); कविता श्रीवास्तव (PUCL); कैलाश मीणा (जनआंदोलनों का राष्ट्रीय समन्वय, राजस्थान); प्रफुल्ल समांतरा (लोक शक्ति अभियान)

लिंगराज आज़ाद (समजवादी जन परिषद्, नियमगिरि सुरक्षा समिति); लिंगराज प्रधान, सत्य बंछोर, अनंत, कल्याण आनंद, अरुण जेना, त्रिलोचन पुंजी, लक्ष्मीप्रिया, बालकृष्ण, मानस पटनायक (जनआंदोलनों का राष्ट्रीय समन्वय, ओडिशा)

संदीप पांडेय (सोशलिस्ट पार्टी ऑफ़ इंडिया); ऋचा सिंह, रामबेटी (संगतिन किसान मज़दूर संगठन, सीतापुर); राजीव यादव, मसीहुद्दीन (रिहाई मंच, लखनऊ); अरुंधति धुरु, ज़ैनब ख़ातून (महिला युवा अधिकार मंच, लखनऊ); सुरेश राठोड (मनरेगा मज़दूर यूनियन, वाराणसी),अरविन्द मूर्ति, अल्तमस अंसारी (इंक़लाबी कामगार यूनियन, मऊ), जाग्रति राही (विज़न संसथान, वाराणसी), सतीश सिंह (सर्वोदयी विकास समिति, वाराणसी); नकुल सिंह साहनी (चल चित्र अभियान)

पी चेन्नय्या (APVVU); रामकृष्णं राजू (यूनाइटेड फोरम फॉर RTI एंड NAPM);चकरी (समालोचना); बालू गाडी, बापजी जुव्वाला (जनआंदोलनों का राष्ट्रीय समन्वय, आंध्र प्रदेश);

जीवन कुमार, सईद बिलाल (ह्यूमन राइट्स फोरम); पी शंकर (दलितबहुजन फ्रंट); विस्सा किरण कुमार , कोंदल (रयथु स्वराज्य वेदिका); रवि कनगंटी (रयथु, JAC ); आशालता (मकाम); कृष्णा (TVV); एम् वेंकटय्या (TVVU ); मीरा संघमित्रा (जनआंदोलनों का राष्ट्रीय समन्वय, तेलंगाना)

सिस्टर सीलिया (डोमेस्टिक वर्कर यूनियन); मेजर जनरल (रिटायर्ड) एस जी वोमबतकेरे (जनआंदोलनों का राष्ट्रीय समन्वय); नलिनी गौड़ा (KRRS); नवाज़, द्विजी गुरु, नलिनी, मधु भूषण, ममता, सुशीला, शशांक (जनआंदोलनों का राष्ट्रीय समन्वय, कर्नाटक)

गाब्रिएल (पेन्न उरिमय इयक्कम, मदुरै); गीता रामकृष्णन (USWF); सुतंतिरण, लेनिन, इनामुल हसन, अरुल दोस, विकास (जनआंदोलनों का राष्ट्रीय समन्वय, तमिल नाडु);

विलायोडी, सी आर नीलकंदन, कुसुमम जोसफ, शरथ चेल्लूर, विजयराघवन, मजींदरन, मगलीन (जनआंदोलनों का राष्ट्रीय समन्वय, केरल)

दयामनी बरला (आदिवासीमूलनिवासी अस्तित्व रक्षा समिति); बसंत, अलोक, डॉ लियो, अफ़ज़ल, सुषमा, दुर्गा, जीपाल, प्रीति रंजन, अशोक (जनआंदोलनों का राष्ट्रीय समन्वय, झारखण्ड)

आनंद माज़गाओंकर, स्वाति, कृष्णकांत, पार्थ (पर्यावरण सुरक्षा समिति); नीता महादेव, मुदिता (लोक समिति ); देव देसाई, मुजाहिद, रमेश, भरत (जनआंदोलनों का राष्ट्रीय समन्वय, गुजरात)

विमल भाई (माटु जन संगठन); जबर सिंह, उमा (जनआंदोलनों का राष्ट्रीय समन्वय, उत्तराखंड)

मान्शी, हिमशि, हिमधारा  (जनआंदोलनों का राष्ट्रीय समन्वय, हिमाचल प्रदेश)

एरिक, अभिजीत, तान्या, डयाना, एमिल, कैरोलिन, फ्रांसेस्का (जनआंदोलनों का राष्ट्रीय समन्वय, गोवा)

गौतम बंदोपाध्याय (नदी घाटी मोर्चा); कलादास डहरिया (RELAA); अलोक, शालिनी (जनआंदोलनों का राष्ट्रीय समन्वय, छत्तीसगढ़)

समर, अमिताव, बिनायक, सुजाता, प्रदीप, प्रसारुल, तपस, ताहोमिना, पबित्र, क़ाज़ी मुहम्मद, बिश्वजीत, आयेशा, रूपक, मिलान, असित, मीता, यासीन, मतीउर्रहमान, बाइवाजित (जनआंदोलनों का राष्ट्रीय समन्वय, पश्चिम बंगाल)

सुनीति, संजय, सुहास, प्रसाद, मुक्त, युवराज, गीतांजलि, बिलाल, जमीला (घर बचाओ घर बनाओ आंदोलन); चेतन साल्वे (नर्मदा बचाओ आंदोलन); परवीन जहांगीर (जनआंदोलनों का राष्ट्रीय समन्वय, महाराष्ट्र)

जे इस वालिया (जनआंदोलनों का राष्ट्रीय समन्वय, हरियाणा)

गुरुवंत सिंह, नरबिंदर सिंह (जनआंदोलनों का राष्ट्रीय समन्वय, पंजाब)

कामायनी, आशीष रंजन (जनजागरण शक्ति संगठन); महेंद्र यादव (कोसी नवनिर्माण मंच)

राजेंद्र रवि (जनआंदोलनों का राष्ट्रीय समन्वय); भूपेंद्र सिंह रावत (जन संघर्ष वाहिनी); अंजलि, अमृता जोहरी (सतर्क नागरिक संगठन); संजीव कुमार (दलित आदिवासी शक्ति अधिकार मंच); अनीता कपूर (दिल्ली शहरी महिला कामगार यूनियन); सुनीता रानी (नेशनल डोमेस्टिक वर्कर यूनियन); नन्हू प्रसाद (नेशनल साइकिलिस्ट यूनियन); मधुरेश, प्रिया, आर्यमन, दिव्यांश, ईविता, अनिल (दिल्ली सॉलिडेरिटी ग्रुप); एम् जे विजयन (PIPFPD)

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