सीतापुर जिले के 162 गरीब किसानों को  5०,००० से 10,००,००० रु तक के बॉन्ड भरने के लिए जारी किये गए मनमाने नोटिस वापस लेने को मजबूर हुई उ.प्र सरकार

आधारहीन प्रसाशनिक आदेशों द्वारा किसान आन्दोलन नहीं रुकेगा

उत्तर प्रदेश सरकार गैर कानूनी नजर बंदी बंद करे और

किसानों – सामाजिक कार्यकर्ताओं के खिलाफ़ लंबित सभी केस वापस ले

8 फरवरी, 2021: अलाहबाद उच्च न्यायालय की रमेश सिन्हा और राजीव सिंह की खंडीय न्याय पीठ ने अपने 2 फरवरी के आदेश से यह साफ़ प्रतीत होता है कि उत्तर प्रदेश सरकार के पास ऐसा कोई न्यायायिक आधार नहीं है जिसके तहत वह किसानों और सामाजिक कार्यकर्ताओं को शांतिपूर्ण प्रदर्शन का हिस्सा होने से रोके. यह एक बेहद महत्वपूर्ण आदेश है जो लोगों के संवैधानिक अधिकारों को सुनिश्चित करता है और साथ ही निरंकुश प्रसाशन तंत्र के लिए एक चेतावनी का काम करता है. न्यायालय का यह आदेश यह स्थापित करता है कि उत्तर प्रदेश सरकार द्वारा किसानों को 26 जनवरी के प्रदर्शन में जाने से रोकने के लिए 19 जनवरी और उसके बाद जारी किये गए आदेश कितने निरर्थक और प्राकृतिक न्याय के सूत्रों का उल्लंघन करने वाले थे.

यह आदेश एन.ए.पी.एम. संयोजक अरुंधती धुरु द्वारा दायर जनहित याचिका के तहत आया है. कोर्ट जाने का कारण “संगतिन किसान मजदूर संगठन”, सीतापुर के किसानों और मज़दूरों को धारा 111 के तहत जारी किये गए आदेश थे जिसका आधार मात्र पुलिस की ‘कानून व्यवस्था’ भंग होने की आशंका थी. जनहित याचिका के तहत ये मांग की गयी थी कि 163 किसानों, जिनमे महिला किसान भी शामिल थी, के खिलाफ़ जारी ऐसे सभी आदेश रद्द हों जिनमें उनसे 50,000 से लेकर 10,00,000 तक के बांड भरने को कहा गया और आश्वासन  की मांग की गयी ताकि ये लोग किसी भी तरह के प्रदर्शन में भाग न लें. यह आदेश न सिर्फ निरर्थक/अव्यवहारिक थे बल्कि अन्यायपूर्ण थे और उन छोटे किसानो व् मजदूरों जिनमे ज्यादातर दलित व् पिछड़े समुदायों से आते हैं, उनकी स्थिति का मज़ाक उड़ाते भी प्रतीत होते थे.

जैसा कि आदेश में साफ़ साफ़ देखा जा सकता है- जब न्यायालय द्वारा एडवोकेट जनरल से यह पूछा गया कि क्यों सीतापुर के विभिन्न उप- जिलाधिकारियों  द्वारा इस तरह से निषेधात्मक बांड मांगे गए, तो अपर महाधिवक्ता इसे समझाने में असमर्थ रहे. हालांकि उन्होंने यह बताया कि कानून- व्यवस्था को कोई खतरा नहीं होने के मद्देनज़र उक्त व्यक्तियों के खिलाफ़ सभी कार्यवाहियां वापिस ले ली गयी हैं. साथ ही न्यायालय ने सीतापुर प्रसाशन को यह निर्देश भी दिया कि ‘आगे से वह इस बात का ध्यान रखे ताकि लोगों के गैर जरूरी प्रतारणा से बचाया जा सके”.

उक्त बातों का संज्ञान लेते हुए, माननीय उच्च न्यायालय द्वारा यह मामला यह कहते हुए निस्तारित किया गया कि “प्रसाशन का आचरण ऐसा न दर्शाता हो कि वह मनमाने ढंग से चलता है और वह प्राकृतिक न्याय के सिद्धांत के खिलाफ़ काम करता है”. एन.ए.पी.एम. न्यायालय के इस आदेश का स्वागत करता है और यह उम्मीद करता है कि इस आदेश का पालन पूरे राज्य में इसी भावना के साथ किया जाएगा और आगे से सरकार इस तरह के गैर – ज़िम्मेदाराना तरीके नहीं अपनाएगी. 

जैसा कि हम काफी समय से यह देख रहें हैं, यह कार्यवाही उन तमाम कोशिशों को दर्शा रही है जिसके तहत सरकार सामाजिक कार्यकर्ताओं, किसानों, छात्रों द्वारा ऐतिहासिक किसान आन्दोलन के साथ एकता दिखाने वाले कार्यक्रमों को रोकने का प्रयास कर रही है. खासतौर पर केंद्र सरकार किसान आन्दोलन को रोकने के नाकाम प्रयास करती रही है तथा सरकारी और मीडिया तंत्र का उपयोग करते हुए आन्दोलनकारियों को गिरफ्तार कर या उन्हें फसाकर बदनाम करने की पूरी कोशिश कर रही है. कुछ ही हफ्तों पहले एन.ए.पी.एम. संयोजक ऋचा सिंह को भी इसी तरह गैर कानूनी तरीके से कुछ दिनों तक घर में नजरबन्द किया गया. वरिष्ठ कार्यकर्ता रामजनम के खिलाफ़ गुंडा एक्ट के तहत केस भी दायर किया गया.

6 फरवरी के दिन जब किसान आन्दोलन द्वारा राष्ट्रीय स्तर पर शांतिपूर्ण चक्का जाम का आह्वान किया गया था, तब मनरेगा मजदूर यूनियन वाराणसी के सुरेश राठौड़ को शांति भंग करने की आशंका का हवाला देकर उन्हें घर पर नजरबन्द कर दिया गया. पहले भी इस तरह के आन्दोलनों में उनकी भागीदारी रोकने के लिए सरकार ऐसे कदम उठाती रही है.  

इससे कुछ दिन पहले पुलिस द्वारा सामाजिक कार्यकर्ता नंदलाल मास्टर, श्याम सुन्दर, अमित, पंचमुखी सिंह और सुनील कुमार के साथ साथ 25 अन्य ‘अज्ञात लोगों’ के खिलाफ़ एफ.आई.आर. दर्ज कर दी गयी क्योंकि इन्होंने 29 जनवरी को एक शांतिपूर्ण प्रदर्शन में भाग लिया जिसमें 3 कृषि बिलों की प्रतिओं को जलाया गया. जिस 1932 के संयुक्त-प्रान्त विशेषाधिकार कानून का इस केस में इस्तेमाल किया गया उसे हमेशा से ही राज्य द्वारा लोकताँत्रिक आंदोलनों को कुचलने के लिए इस्तेमाल किया जाता रहा है, खास तौर पर बी.जे.पी. द्वारा. 

 कोरोना महामारी के बहाने को इस्तेमाल करते हुए डिजास्टर मैनेजमेंट एक्ट को भी कुछ खास आयोजनों को रोकने के लिए इस्तेमाल किया जा रहा है, भले ही सारी सावधानियां क्यों न बरती गयी हों. संवैधानिक क़ानूनों और प्रावधानों की सुविधाजनक व्याख्या और इस्तेमाल द्वारा आंदोलनों को कुचलना सरकार की मुख्य पहचान बन गयी है. हम इस बात को पुरजोर तरीके से रखना चाहते हैं कि विधायिका का काम महामारी के दौरान व्यवस्था बनाये रखने का है न कि लोगों के संगठित होने के संवैधानिक अधिकार में बाधा डालने का.   

ऐसी ही एक मार्मिक घटना में, उत्तर प्रदेश पुलिस द्वारा बलजिंदर सिंह के परिवार वालो के खिलाफ़ एफ.आई.आर. दर्ज कर दी गयी क्योंकि वे बलजिंदर के गाजीपुर प्रदर्शन स्थल में मारे जाने के बाद उन्हें तिरंगे में लपेट कर ले जा रहे थे. यह घटना कुछ साल पहले के उस वाकये कि याद दिलाती है जब ‘दादरी लिंचिंग केस’ के एक आरोपी की मौत के बाद उसे भी तिरंगे में लपेट कर ले जाया गया था, हालाकिं उस समय उन लोगों पर कोई मुकदमा नहीं चला. 

हाल ही में आई ख़बर के अनुसार, उत्तर प्रदेश सरकार ने एक बार फिर आंदोलन में भाग लेने वाले किसानों की तरफ़ दमनकारी रवैया दिखाया है. उत्तर प्रदेश के मुज़फ्फरनगर में हुई एक महापंचायत में हिस्सेदारी करने वाले क़रीब २०० किसानों को नोटिस जारी गया है कि वे २ लाख रूपए का निजी बांड भरें जिससे ‘शांति’ सुनिश्चित की जा सके.

राज्य के इस उग्र व्यवहार को संदर्भ में देखा जाये तो अलाहबाद उच्च न्यायालय का यह आदेश प्रसाशन व् पुलिस के लिए सबक है कि उनका कर्त्तव्य नागरिकों के संगठित होने के संवैधानिक अधिकारों को बचाना है और उनके शांतिपूर्ण व् लोकताँत्रिक तरीके से प्रदर्शन करने के अधिकार को सुनिश्चित करना है. राज्य की मशीनरी का इस्तेमाल एकतरफ़ा तरीके अपनाते हुए मनमाने ढंग से कुछ खास लोगों की आवाज़ को दबाने के लिए नहीं किया जा सकता. 

एक तरह से यह फैसला उन लोगों को हौसला देता है जो लोकताँत्रिक मूल्यों की बात करते हैं. यह फैसला UNHRC के 5 फरवरी की उस घोषणा की भावना को दर्शाता है, जिसमे प्रदर्शनकारियों के शांतिपूर्ण तरीके से एकत्र होने व् अपनी बात रखने के अधिकार को सुनिश्चित करने की बात पर जोर दिया गया था. राज्य को इस बात का बिलकुल अधिकार नहीं है कि वह कानून का इस्तेमाल लोगों की आवाज़ को कुचलने के लिए करे जैसा कि किसान आन्दोलन के साथ वह कर रही है जो कि न सिर्फ उत्तर प्रदेश बल्कि पूरे देश में तेजी से फ़ैल रहा है. 

हम उत्तर प्रदेश राज्य प्रसाशन से यह उम्मीद करते हैं कि वह उच्च न्यायालय के आदेश के निहितार्थों पर विचार करेगी, न सिर्फ शब्दों बल्कि उसकी भावनाओं को समझेगी, और जो सामाजिक कार्यकर्ताओं को नजरबन्द करने, उन्हें जेल में डालने का सिलसिला जारी है, उसे बंद करेगी व् सभी फर्जी मुक़दमे वापस लेगी.

हम राज्य सरकार से यह अनुरोध करते हैं कि वह प्रतिरोध की आवाज़ों का इस तरह से दमन करना बंद करे. अलोकतांत्रिक कानून और आदेशों के खिलाफ़ लोकतांत्रिक तरीके से प्रदर्शन जारी रहेंगे. 

हम सभी नागरिकों व् लोकताँत्रिक संगठनों से यह आह्वान करते हैं कि वह पहले से कहीं ज्यादा सजग रहें और शांतिपूर्ण तरीके से संगठित होने व् प्रतिरोध करने के बुनियादी अधिकारों के लिए आवाज़ उठाते रहें.

हम प्रदर्शन कर रहे देश भर के किसानों के साथ खड़े हैं और 3 नए कृषि क़ानूनों को वापस लेने की मांग पर अडिग हैं.

मेधा पाटकर (नर्मदा बचाओ आंदोलन, जनआंदोलनों का राष्ट्रीय समन्वय); डॉ सुनीलम, आराधना भार्गव (किसान संघर्ष समिति), राजकुमार सिन्हा (चुटका परमाणु विरोधी संघर्ष समिति); पल्लव (जनआंदोलनों का राष्ट्रीय समन्वय, मध्य प्रदेश)

अरुणा रॉय, निखिल डे, शंकर सिंह (मज़दूर किसान शक्ति संगठन); कविता श्रीवास्तव (PUCL); कैलाश मीणा (जनआंदोलनों का राष्ट्रीय समन्वय, राजस्थान); प्रफुल्ल समांतरा (लोक शक्ति अभियान)

लिंगराज आज़ाद (समजवादी जन परिषद्, नियमगिरि सुरक्षा समिति); लिंगराज प्रधान, सत्य बंछोर, अनंत, कल्याण आनंद, अरुण जेना, त्रिलोचन पुंजी, लक्ष्मीप्रिया, बालकृष्ण, मानस पटनायक (जनआंदोलनों का राष्ट्रीय समन्वय, ओडिशा)

संदीप पांडेय (सोशलिस्ट पार्टी ऑफ़ इंडिया); ऋचा सिंह, रामबेटी (संगतिन किसान मज़दूर संगठन, सीतापुर); राजीव यादव, मसीहुद्दीन (रिहाई मंच, लखनऊ); अरुंधति धुरु, ज़ैनब ख़ातून (महिला युवा अधिकार मंच, लखनऊ); सुरेश राठोड (मनरेगा मज़दूर यूनियन, वाराणसी),अरविन्द मूर्ति, अल्तमस अंसारी (इंक़लाबी कामगार यूनियन, मऊ), जाग्रति राही (विज़न संसथान, वाराणसी), सतीश सिंह (सर्वोदयी विकास समिति, वाराणसी); नकुल सिंह साहनी (चल चित्र अभियान)

पी चेन्नय्या (APVVU); रामकृष्णं राजू (यूनाइटेड फोरम फॉर RTI एंड NAPM);चकरी (समालोचना); बालू गाडी, बापजी जुव्वाला (जनआंदोलनों का राष्ट्रीय समन्वय, आंध्र प्रदेश);

जीवन कुमार, सईद बिलाल (ह्यूमन राइट्स फोरम); पी शंकर (दलितबहुजन फ्रंट); विस्सा किरण कुमार , कोंदल (रयथु स्वराज्य वेदिका); रवि कनगंटी (रयथु, JAC ); आशालता (मकाम); कृष्णा (TVV); एम् वेंकटय्या (TVVU ); मीरा संघमित्रा (जनआंदोलनों का राष्ट्रीय समन्वय, तेलंगाना)

सिस्टर सीलिया (डोमेस्टिक वर्कर यूनियन); मेजर जनरल (रिटायर्ड) एस जी वोमबतकेरे (जनआंदोलनों का राष्ट्रीय समन्वय); नलिनी गौड़ा (KRRS); नवाज़, द्विजी गुरु, नलिनी, मधु भूषण, ममता, सुशीला, शशांक (जनआंदोलनों का राष्ट्रीय समन्वय, कर्नाटक)

गाब्रिएल (पेन्न उरिमय इयक्कम, मदुरै); गीता रामकृष्णन (USWF); सुतंतिरण, लेनिन, इनामुल हसन, अरुल दोस, विकास (जनआंदोलनों का राष्ट्रीय समन्वय, तमिल नाडु);

विलायोडी, सी आर नीलकंदन, कुसुमम जोसफ, शरथ चेल्लूर, विजयराघवन, मजींदरन, मगलीन (जनआंदोलनों का राष्ट्रीय समन्वय, केरल)

दयामनी बरला (आदिवासीमूलनिवासी अस्तित्व रक्षा समिति); बसंत, अलोक, डॉ लियो, अफ़ज़ल, सुषमा, दुर्गा, जीपाल, प्रीति रंजन, अशोक (जनआंदोलनों का राष्ट्रीय समन्वय, झारखण्ड)

आनंद माज़गाओंकर, स्वाति, कृष्णकांत, पार्थ (पर्यावरण सुरक्षा समिति); नीता महादेव, मुदिता (लोक समिति ); देव देसाई, मुजाहिद, रमेश, भरत (जनआंदोलनों का राष्ट्रीय समन्वय, गुजरात)

विमल भाई (माटु जन संगठन); जबर सिंह, उमा (जनआंदोलनों का राष्ट्रीय समन्वय, उत्तराखंड)

मान्शी, हिमशि, हिमधारा  (जनआंदोलनों का राष्ट्रीय समन्वय, हिमाचल प्रदेश)

एरिक, अभिजीत, तान्या, डयाना, एमिल, कैरोलिन, फ्रांसेस्का (जनआंदोलनों का राष्ट्रीय समन्वय, गोवा)

गौतम बंदोपाध्याय (नदी घाटी मोर्चा); कलादास डहरिया (RELAA); अलोक, शालिनी (जनआंदोलनों का राष्ट्रीय समन्वय, छत्तीसगढ़)

समर, अमिताव, बिनायक, सुजाता, प्रदीप, प्रसारुल, तपस, ताहोमिना, पबित्र, क़ाज़ी मुहम्मद, बिश्वजीत, आयेशा, रूपक, मिलान, असित, मीता, यासीन, मतीउर्रहमान, बाइवाजित (जनआंदोलनों का राष्ट्रीय समन्वय, पश्चिम बंगाल)

सुनीति, संजय, सुहास, प्रसाद, मुक्त, युवराज, गीतांजलि, बिलाल, जमीला (घर बचाओ घर बनाओ आंदोलन); चेतन साल्वे (नर्मदा बचाओ आंदोलन); परवीन जहांगीर (जनआंदोलनों का राष्ट्रीय समन्वय, महाराष्ट्र)

जे इस वालिया (जनआंदोलनों का राष्ट्रीय समन्वय, हरियाणा)

गुरुवंत सिंह, नरबिंदर सिंह (जनआंदोलनों का राष्ट्रीय समन्वय, पंजाब)

कामायनी, आशीष रंजन (जनजागरण शक्ति संगठन); महेंद्र यादव (कोसी नवनिर्माण मंच)

राजेंद्र रवि (जनआंदोलनों का राष्ट्रीय समन्वय); भूपेंद्र सिंह रावत (जन संघर्ष वाहिनी); अंजलि, अमृता जोहरी (सतर्क नागरिक संगठन); संजीव कुमार (दलित आदिवासी शक्ति अधिकार मंच); अनीता कपूर (दिल्ली शहरी महिला कामगार यूनियन); सुनीता रानी (नेशनल डोमेस्टिक वर्कर यूनियन); नन्हू प्रसाद (नेशनल साइकिलिस्ट यूनियन); मधुरेश, प्रिया, आर्यमन, दिव्यांश, ईविता, अनिल (दिल्ली सॉलिडेरिटी ग्रुप); एम् जे विजयन (PIPFPD)

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