सत्ता पक्ष के इशारे पर बिहार विधानसभा के भीतर क्रूर पुलिस हिंसा निंदनीय
अलोकतांत्रिक बिहार विशेष सशस्त्र पुलिस विधेयक को तुरंत वापस लो !
27 मार्च, 2021: सारी संसदीय परम्पराओं और संवैधानिक मानकों को तोड़ते हुए, ‘बिहार विशेष सशस्त्र पुलिस विधेयक, 2021’ जैसे निरंकुश कानून को निरंकुश तरीके से पारित किये जाने का जन आन्दोलनों का राष्ट्रीय समन्वय भर्त्सना करता है I 23 मार्च हिन्दुस्तान की जनता के लिए एक बहुत अहम् दिन है I इसी दिन स्वतंत्रता सेनानी भगत सिंह, सुखदेव और राजगुरु ने एक आजाद भारत के लिए शहादत दी थी और इसी दिन प्रख्यात समाजवादी नेता राम मनोहर लोहिया का जन्म भी हुआ थाI इस ऐतिहासिक दिन पर विधायकों को पिटवाने के बाद, बिहार को पुलिस राज में बदल देने वाला विधेयक पारित किया गया |
बिहार विशेष सशस्त्र पुलिस विधेयक, 2021 नीतीश कुमार सरकार द्वारा पेश किया गया, एक अलोकतांत्रिक, निर्दयी, और दमनकारी कानून है, जिसके माध्यम से बिहार सशस्त्र पुलिस को असंवैधानिक और गैर-वाजिब अधिकार दिए गए हैं कि:
1. किसी भी व्यक्ति को केवल ‘संदेह’ के आधार पर गिरफ्तार करें।
2. विशेष सशस्त्र पुलिस से जुड़ी शासन-यंत्रणा के खिलाफ ‘हमले की धमकी, बल का उपयोग या किसी अन्य धमकी’ के मामले में वारंट के बिना गिरफ्तारी।
3. बिना वारंट के किसी का भी तलाशी लेना और गिरफ्तारी करना
यह विधेयक विशेष सशस्त्र पुलिस को दंड-मुक्ति प्रदान करता है | अतः जब आरोपित व्यक्ति एक विशेष सशस्त्र पुलिस अधिकारी है, तो उनके किसी भी अपराध का संज्ञान कोई भी न्यायलय नहीं लेगा | यानी कि अगर एक विशेष सशस्त्र पुलिस अधिकारी ज्यादती करता है तो आम जन इन्साफ के न्यायालय भी नहीं जा सकते हैं |
प्रत्येक नागरिक को दी गई संवैधानिक और कानूनी संरक्षण का अवहेलना करते हुए, यह विधेयक राज्य और केंद्र सरकारों को बेलगाम शक्तियों का कानूनी कवच और औचित्य प्रदान करता है, जिसके द्वारा वे विपक्षीय आवाजों, मानवाधिकार कार्यकर्ताओं, बुद्धिजीवियों, छात्रों, लेखकों, कलाकारों और सरकार की नीतियों का विरोध या आलोचना करने वाले किसी पर भी दमन कर पाएंगे | निस्संदेह, बिहार विशेष सशस्त्र पुलिस विधेयक, 2021, सत्तावाद और मनमानी का एक हानिकारक, खतरनाक और अन्यायपूर्ण उदाहरण है |
विधेयक का विरोध सदन के भीतर और बाहर भी हुआ, जहां एक रैली निकली गई | रैली में भाग लेने वालों पर सत्ता-पक्षीय ताकतों के इशारों पर पुलिस हिंसा का शिकार होना पड़ा, जिसमें भारतीय जनता पार्टी और जनता दल (यूनाइटेड) शामिल हैं। सभा के भीतर प्रदर्शनकारियों को भी इसी तरह की हिंसा का सामना करना पड़ा क्योंकि उन्हें सत्र से हटाने के लिए पुलिस को बुलाया गया था।
बिहार विधानसभा, लोकतंत्र की एक महत्वपूर्ण संस्था, पर हमले को रोकने के बजाय, पुलिस ने विधायकों पर ही हमला किया, जिसमें महिलाएं और बुजुर्ग भी शामिल थे। इस घटने ने न केवल सदन और लोकतंत्र की मर्यादा को तार-तार किया है बल्कि उन करोड़ों लोगों के मतों का भी अपमान किया हैं, जिनके चुने गए विधायकों को नीतीश कुमार की पुलिस लात मारते, जूतों से पीटते, घसीटे जाते कैमरे में दिखाई देते हैं।
घटना के बाद, नितीश कुमार द्वारा पुलिसिया कारवाई को ‘सही’ ठहराने वाले बयान से यह भी स्पष्ट होता है कि यह सब सभापति महोदय द्वारा सत्ता पक्ष के इशारे पर किया गया है I इस अलोकतांत्रिक, बिहार विधान सभा की गरिमा गिराने की घटना के बाद सदन में नीतीश कुमार द्वारा यह कहना कि ‘विधान भवन में सांस्कृतिक संध्या का आयोजन है और सभी के लिए भोजन की व्यवस्था है’, उनके ‘समाजवादी’ होने का ढोंग से पर्दा उठता है ! इस घटना से सभापति पद की गरिमा भी खंड-खंड हो गयीI इससे यह बात और भी स्पष्ट हो जाति है कि राज्य और केंद्र एक साथ पुलिस की कार्रवाई और दमनकारी कानूनों को आगे बढ़ाने में लगे हैं |
जन आन्दोलनों का राष्ट्रीय समन्वय मांग करता है कि:
(i) अलोकतांत्रिक बिहार विशेष सशस्त्र पुलिस विधेयक, 2021 को तत्काल वापस लिया जाए।
(ii) बिहार विधानसभा में हुई इस शर्मनाक घटना के लिए और अपनी भूमिका से सदन और लोकतंत्र की गरिमा को ठेस पहुँचने के लिए, विपक्षी विधायकों, सदन और बिहार के पूरे आवाम को संबोधित करते हुए, मुख्य मंत्री और सभापति महोदय माफीनामा जारी करे |
(iii) मुख्य मंत्री सुनिश्चित करे कि पुलिस को दी गई शक्तियों में किसी भी संशोधन पर विचार करने से पहले सदन में समावेशी, हिंसा-रहित और उचित बहस हो |
मेधा पाटकर (नर्मदा बचाओ आंदोलन, जन–आंदोलनों का राष्ट्रीय समन्वय); डॉ सुनीलम, आराधना भार्गव (किसान संघर्ष समिति), राजकुमार सिन्हा (चुटका परमाणु विरोधी संघर्ष समिति);
अरुणा रॉय, निखिल डे, शंकर सिंह (मज़दूर किसान शक्ति संगठन); कविता श्रीवास्तव (PUCL); कैलाश मीणा (जन–आंदोलनों का राष्ट्रीय समन्वय, राजस्थान);
प्रफुल्ल समांतरा (लोक शक्ति अभियान), लिंगराज आज़ाद (समजवादी जन परिषद्, नियमगिरि सुरक्षा समिति); लिंगराज प्रधान, सत्य बंछोर, अनंत, कल्याण आनंद, अरुण जेना, त्रिलोचन पुंजी, लक्ष्मीप्रिया, बालकृष्ण, मानस पटनायक (जन–आंदोलनों का राष्ट्रीय समन्वय, ओडिशा)
संदीप पांडेय (सोशलिस्ट पार्टी ऑफ़ इंडिया); ऋचा सिंह, रामबेटी (संगतिन किसान मज़दूर संगठन, सीतापुर); राजीव यादव, मसीहुद्दीन (रिहाई मंच, लखनऊ); अरुंधति धुरु, ज़ैनब ख़ातून (महिला युवा अधिकार मंच, लखनऊ); सुरेश राठोड (मनरेगा मज़दूर यूनियन, वाराणसी),अरविन्द मूर्ति, अल्तमस अंसारी (इंक़लाबी कामगार यूनियन, मऊ), जाग्रति राही (विज़न संसथान, वाराणसी), सतीश सिंह (सर्वोदयी विकास समिति, वाराणसी); नकुल सिंह साहनी (चल चित्र अभियान)
पी चेन्नय्या (APVVU); रामकृष्णं राजू (यूनाइटेड फोरम फॉर RTI एंड NAPM);चकरी (समालोचना); बालू गाडी, बापजी जुव्वाला (जन–आंदोलनों का राष्ट्रीय समन्वय, आंध्र प्रदेश);
जीवन कुमार, सईद बिलाल (ह्यूमन राइट्स फोरम); पी शंकर (दलित–बहुजन फ्रंट); विस्सा किरण कुमार , कोंदल (रयथु स्वराज्य वेदिका); रवि कनगंटी (रयथु, JAC ); आशालता (मकाम); कृष्णा (TVV); एम् वेंकटय्या (TVVU ); मीरा संघमित्रा (जन–आंदोलनों का राष्ट्रीय समन्वय, तेलंगाना)
सिस्टर सीलिया (डोमेस्टिक वर्कर यूनियन); मेजर जनरल (रिटायर्ड) एस जी वोमबतकेरे (जन–आंदोलनों का राष्ट्रीय समन्वय); नलिनी गौड़ा (KRRS); नवाज़, द्विजी गुरु, नलिनी, मधु भूषण, ममता, सुशीला, शशांक (जन–आंदोलनों का राष्ट्रीय समन्वय, कर्नाटक)
गाब्रिएल (पेन्न उरिमय इयक्कम, मदुरै); गीता रामकृष्णन (USWF); सुतंतिरण, लेनिन, इनामुल हसन, अरुल दोस, विकास (जन–आंदोलनों का राष्ट्रीय समन्वय, तमिल नाडु);
विलायोडी, सी आर नीलकंदन, कुसुमम जोसफ, शरथ चेल्लूर, विजयराघवन, मजींदरन, मगलीन (जन–आंदोलनों का राष्ट्रीय समन्वय, केरल)
दयामनी बरला (आदिवासी– मूलनिवासी अस्तित्व रक्षा समिति); बसंत, अलोक, डॉ लियो, अफ़ज़ल, सुषमा, दुर्गा, जीपाल, प्रीति रंजन, अशोक (जन–आंदोलनों का राष्ट्रीय समन्वय, झारखण्ड)
आनंद माज़गाओंकर, स्वाति, कृष्णकांत, पार्थ (पर्यावरण सुरक्षा समिति); नीता महादेव, मुदिता (लोक समिति ); देव देसाई, मुजाहिद, रमेश, भरत (जन–आंदोलनों का राष्ट्रीय समन्वय, गुजरात)
विमल भाई (माटु जन संगठन); जबर सिंह, उमा (जन–आंदोलनों का राष्ट्रीय समन्वय, उत्तराखंड)
मान्शी, हिमशि, हिमधारा (जन–आंदोलनों का राष्ट्रीय समन्वय, हिमाचल प्रदेश)
एरिक, अभिजीत, तान्या, डयाना, एमिल, कैरोलिन, फ्रांसेस्का (जन–आंदोलनों का राष्ट्रीय समन्वय, गोवा)
गौतम बंदोपाध्याय (नदी घाटी मोर्चा); कलादास डहरिया (RELAA); अलोक शुक्ला, शालिनी गेरा (जन–आंदोलनों का राष्ट्रीय समन्वय, छत्तीसगढ़) व आमोद
समर, अमिताव, बिनायक, सुजाता, प्रदीप, प्रसारुल, तपस, ताहोमिना, पबित्र, क़ाज़ी मुहम्मद, बिश्वजीत, आयेशा, रूपक, मिलान, असित, मीता, यासीन, मतीउर्रहमान, बाइवाजित (जन–आंदोलनों का राष्ट्रीय समन्वय, पश्चिम बंगाल)
सुनीति, संजय, सुहास, प्रसाद, मुक्त, युवराज, गीतांजलि, बिलाल, जमीला (घर बचाओ घर बनाओ आंदोलन); चेतन साल्वे (नर्मदा बचाओ आंदोलन); परवीन जहांगीर (जन–आंदोलनों का राष्ट्रीय समन्वय, महाराष्ट्र)
जे इस वालिया (जन–आंदोलनों का राष्ट्रीय समन्वय, हरियाणा)
गुरुवंत सिंह, नरबिंदर सिंह (जन–आंदोलनों का राष्ट्रीय समन्वय, पंजाब)
कामायनी, आशीष रंजन (जन–जागरण शक्ति संगठन); महेंद्र यादव (कोसी नवनिर्माण मंच), सिस्टर डोरोथी
राजेंद्र रवि (जन–आंदोलनों का राष्ट्रीय समन्वय); भूपेंद्र सिंह रावत (जन संघर्ष वाहिनी); अंजलि, अमृता जोहरी (सतर्क नागरिक संगठन); संजीव कुमार (दलित आदिवासी शक्ति अधिकार मंच); अनीता कपूर (दिल्ली शहरी महिला कामगार यूनियन); सुनीता रानी (नेशनल डोमेस्टिक वर्कर यूनियन); नन्हू प्रसाद (नेशनल साइकिलिस्ट यूनियन); मधुरेश, प्रिया, आर्यमन, दिव्यांश, ईविता, अनिल (दिल्ली सॉलिडेरिटी ग्रुप); एम् जे विजयन (PIPFPD)
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