अपने खेतों, जंगलों और जैव-विविधता की रक्षा के लिए संघर्षरत गोंडलपुरा के ग्रामीणों के साथ NAPM की एकजुटता

12 मार्च, 2022: जन आंदोलनों का राष्ट्रीय समन्वय (एन.ए.पी.एम), झारखंड के हजारीबाग में अडानी की प्रस्तावित गोंडलपुरा कोयला ब्लॉक खदान के खिलाफ कई महीनों से विरोध कर रहे ग्रामीणों के साथ एकजुटता प्रकट करता है। यह दुखद है कि केंद्र और राज्य सरकार, दोनों ने मूलवासी और आदिवासी ग्रामीणों (एस.सी, एस.टी और ओ.बी.सी सहित) द्वारा उठाई गई गंभीर चिंताओं पर कोई ध्यान नहीं दिया, जबकि ग्रामीण अपने भूमि, नदी और वन संसाधनों को ‘विकास’ के नाम पर विनाश से बचाने के लिए तत्पर हैं।

गोंडलपुरा कोयला ब्लॉक, अनुमानित 176 मिलियन टन कोयला भंडार के साथ, नवंबर, 2020 में अडानी एंटरप्राइजेज लिमिटेड (एईएल) को नीलाम किया गया था, जो कि प्रधान मंत्री द्वारा शुरू किए गए वाणिज्यिक खनन के लिए 41 कोयला ब्लॉकों की ई-नीलामी के हिस्से के रूप में था। हालाँकि इस परियोजना की वित्तीय लागत 1 लाख करोड़ के करीब होने का अनुमान है, फिर भी इसकी दूरगामी सामाजिक और पर्यावरणीय लागत की तरफ कोई चिंता नहीं दिखाई देती।  

उपलब्ध रिकॉर्ड के अनुसार, इस कोयले की खदान से 500 हेक्टेयर से अधिक खेतों, आवासों और जंगलों के नष्ट होने की संभावना है, जिससे 229 मिलियन टन से अधिक सालिड कचरा पैदा होगा। गोंडलपुरा[1], फूलंग, हाहे, बालोदर और गाली सहित कम से कम 5 गांव परियोजना से प्रतिकूल रूप से प्रभावित होंगे। जिले में कोयला खनन गतिविधियों ने पहले से ही आसपास के गांवों को प्रभावित किया है, और इसलिए लोगों में पिछले अनुभव के आधार पर वर्तमान परियोजना के प्रति तीव्र आक्रोश है।

महामारी की दूसरी लहर के बीच मंजूरी लेने और परियोजना कार्य शुरू करने का प्रयास किया गया और इसके तहत जिला प्रशासन, नाबार्ड और कुछ अदानी के अधिकारियों द्वारा सर्वेक्षकों को भेजा गया, जिन्हें कुछ मौकों पर ग्रामीणों ने भगा दिया। गाली ग्राम के ग्रामीणों और उनकी ग्राम वन संरक्षण समिति ने भी सरकार के दिसंबर 2021 में परियोजना से संबंधित सर्वेक्षणों के लिए ‘ग्राम सभाओं की सहमति’ की मांग करते प्रस्तावों पर औपचारिक रूप से आपत्ति जताई।

गौरतलब है कि कोयला खनन के लिए क्षेत्र को खोलने के पिछले सरकारी प्रयासों के खिलाफ भी (2006 से) ग्रामीण आक्रोशित रहे हैं। कोयला ब्लॉक तब तेनुघाट विद्युत निगम लिमिटेड (टी.वी.एन.एल) को आवंटित किया गया था। 2012 में भारी पुलिस बल के बीच आयोजित ‘जन सुनवाई’ का ग्रामीणों ने जमकर विरोध किया। यह सब उनके स्पष्ट और लगातार अपनी जमीन पर खनन कार्यों की अनुमति ने देने का प्रमाण है।

उक्त क्षेत्र में 513.18 हेक्टेयर भूमि शामिल है, जिसमें से 219.65 हेक्टेयर वन भूमि है। कृषि भूमि उपजाऊ है, जो कृषि को ग्रामीणों के लिए जीविका का एक महत्वपूर्ण स्रोत बनाती है। चावल, गन्ना, गेहूं और सरसों जैसी फसलें यहां की खेती का हिस्सा हैं। भूमि का एक बड़ा हिस्सा सामुदायिक भूमि भी है, जिसका उपयोग चारे, जलाऊ लकड़ी इकट्ठा करने आदि के लिए किया जाता है। यह क्षेत्र जैव विविधता में भी समृद्ध है और वन्यजीवों के आवास के रूप में कार्य करता है। ग्रामीणों का कहना है कि परियोजना प्राधिकरण जंगल में विभिन्न प्रकार के वनस्पतियों और जीवों की सही तस्वीर पेश नहीं कर रहा है और परियोजना-संबंधी दस्तावेज़ों में दर्शाया जा rयह है कि यहाँ गहन जंगल नहीं है और कुछ ही जंगली जानवर रहते हैं!

यदि ग्रामीणों के विरोध के बावजूद कोयला परियोजना आगे बढ़ती है, तो यह गांवों, खेतों और जंगलों को नष्ट कर देगी। ग्रामीण इस बात से भी चिंतित हैं कि पहले से ही प्रभावित हाथियों के मार्ग कोयला खनन गतिविधि से और अधिक बाधित होंगे, जिससे फसल का नुकसान होगा और मानव निवास के लिए खतरा पैदा होगा। वे यह भी महसूस करते हैं कि इस तरह के व्यापक कोयला खनन का समय के साथ गंभीर जलवायु प्रभाव होगा, जिसमें अनियमित बारिश, फसल चक्र का प्रभावित होना आदि शामिल हैं। इस क्षेत्र की एक महत्वपूर्ण जीवन रेखा, बादमही नदी के प्रादूधित होने को लेकर भी चिंता व्यक्त की गई है। पर्यावर्णीय विशेषज्ञों को डर है कि खनन के कारण उत्पन्न वास्तविक अपशिष्ट, परियोजना समर्थकों द्वारा बताए गए अनुमान से बहुत अधिक हो सकता है और इसका मतलब होगा कि वास्तविक खनन के लिए उपयोग की जाने वाली भूमि के अतिरिक्त, 103.26 हेक्टेयर भूमि का और विनाश होगा।

गोंडलपुरा कोयला ब्लॉक, जो उत्तरी करनपुरा खनन ब्लॉक का हिस्सा है, को केन्द्रीय पर्यावरण मंत्रालय (MoEF) के ‘नो-गो ज़ोन (श्रेणी-ए क्षेत्रों) में चिन्हित किया गया था, जो कि यह दर्शाता है कि यहां किसी भी खनन गतिविधि का वनों और वन्यजीवों पर गंभीर प्रतिकूल प्रभाव पड़ेगा और वनों के पुनः उत्थान और सुधार के साथ, क्षेत्र की जैव विविधता को बहाल करना संभव नहीं होगा। उन परिस्थितियों पर भी सवाल उठाए गए हैं जिनमें एईएल को कोयला ब्लॉक की नीलामी की गई थी और केन्द्रीय पर्यावरण मंत्रालय की विशेषज्ञ मूल्यांकन समिति (EAC) की अपनी पिछली मानदंडों को कम करने और अपने पिछले मिनटों की अनदेखी करने की बात सामने आयी, विशेष रूप से प्रदूषण, बादमही नदी का विनाश और जैव विविधता पर असर के मुद्दों पर।

उपरोक्त संदर्भ में, हम गोंडलपुरा, फुलंग, हाहे, बालोदर और गाली के ग्रामीणों को अपना पूरा समर्थन देते हैं, जो राज्य और अडानी जैसे बड़े कॉरपोरेट्स से, अपनी भूमि, जंगलों और आजीविका की रक्षा के लिए लड़ रहे हैं। हम मांग करते हैं कि: .

  • भारत सरकार द्वारा अडानी एंटरप्राइजेज़ लिमिटेड को गोंडलपुरा कोयला ब्लॉक में खनन के लिए दी गई अनुमति तुरंत रद्द करे।
  • वन अधिकार अधिनियम, 2006, वन्यजीव (संरक्षण) अधिनियम, 1972, पर्यावरण संरक्षण अधिनियम, 1986, जैविक विविधता अधिनियम, 2002, भूमि अधिग्रहण एवं पुनर्वास अधिनियम,  पेसा अधिनियम, 1996 के प्रावधानों और खनन और ग्राम सभा के अधिकारों पर सर्वोच्च न्यायालय के निर्णयों का उल्लंघन करते हुए कोई कार्यवाही/सर्वेक्षण कार्य/भूमि अधिग्रहण नहीं किया जाना चाहिए।
  • वैश्विक मंचों पर अपनी प्रतिबद्धताओं के अनुसार, भारत को सक्रिय रूप से कोयला आधारित खनन को प्राथमिकता से हटा देना चाहिए और अक्षय ऊर्जा उत्पादन के पर्यावरणीय रूप से टिकाऊ, गैर-विस्थापनीय प्रणाली की ओर बढ़ना चाहिए।

गोंडलपुरा कोयला परियोजना के खिलाफ संघर्ष कर रहे गाँव-वासियों के साथ एकजुटता में, एन.ए.पी.एम द्वारा जारी:

अधिक जानकारी के लिए:

https://thewire.in/rights/jharkhand-villagers-protest-adanis-new-coal-venture-refuse-to-allow-land-acquisition-surveys

https://www.adaniwatch.org/villagers_fight_land_takeover_for_adani_s_gondulpara_coal_mine


[1] सरकारी दस्तावेजों में गोंदुलपारा लिखा गया है।

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